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'आ खीलेलो पलाश ते भडकी ऊठेलो मदनाग्नि छे, आ खीलेली मल्लिका ए कामदेवनुं हास्य छे ।'
कुसुमाकुलमधुकर
जेनां बेकी चरणोमां अगियार मात्रा छे अने एकी चरणोमां तेर मात्रा छे ते कुसुमाकुलमधुकर छंदनुं उदाहरण :
पत्तउ एहु वसंत,
'कुसुमाउल - महुअरु' । माणिणि माणु मलंतउ, कुसुमाउह- सहयरु ॥ ९४
'जेमां पुष्पो उपर भ्रमरो टोळे वळ्या छे, जे मानिनीओनुं मान मर्दन करी रह्यो छे तेवो आ कामदेवनो सहचर वसंत आवी पहोंच्यो छे ।'
भ्रमरविलास
जेनां बेकी चरणोमां अगियार मात्रा छे अने एकी चरणोमां चौद मात्रा छे ते भ्रमरविलास छंदनुं उदाहरण :
अलि मालइ -
-परिमल- -लुगु, न अन्नहिं रइ करइ ।
सा ' भ्रमर - विलास' - विअड्ढ, न अन्नहिं मणु धरइ ॥ ९५
'मालतीनी सुगंधमां लुब्ध बनेलो भ्रमर बीजां पुष्पो उपर प्रेम करतो नथी अने ए भ्रमरविलासनी पारखु मालतीनुं मन पण बीजाओमां चोंटतुं नथी ।' मदनविलास
जेनां बेकी चरणोमां अगियार मात्रा छे अने एकी चरणोमां पंदर मात्रा छे ते मदनविलास छंदनुं उदाहरण :
मयण - विलास - गिरि-व्व सहइ, मुद्धहि थण - मंडलु । निज्झरु किर निम्मलु ॥ ९६
तहिं रेहड़ तरल - हार-लय,
'ते मुग्धानुं स्तनमंडळ कामदेवना क्रीडागिरि जेवुं शोभे छे। एना पर रहेली झळकती हारलता पण निर्मळ झरणं होय तेवी शोभे छे ।'
विद्याधरहास
जेनां बेकी चरणोमां अगियार मात्रा छे अने एकी चरणोमां सोळ मात्रा छे ते विद्याधरहास छंदनुं उदाहरण :
नासंतिहिं समरागम- समइ,
परिचत्त - गइंदिहिं । दिवि 'विज्जाहर हासि 'अ सयल, तुह वेरि-नरिंदिहिं ॥ ९७ 'युद्धनो आरंभ थतां ज हाथीओ छोडी दईने नासी जता तारा शत्रुराजाओए अंतरीक्षमा रहेला बधा विद्याधरोने हसाव्या ।'
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