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________________ [ 128] अभिनव द्विपदी, उदाहरण : किं अज्ज-वि माणंसिणि-, माणसि माणु विसट्टइ माणइ न पयाणउ रमणु । इअ संजाइण कोविण णावइ आरत्तय-तणु अहिणव-उग्गमि हिमकिरणु ॥ ४८ - "हे मनस्विनी, हजी पण तारा मनमां मान केम प्रसरी रह्यं छे ? पगमां पडेला तारा प्रियतमने केम सन्मानती नथी?"- ए प्रमाणे जाणे के रोष उत्पन्न थयो होय तेथी चंद्रनुं बिंब उदयना आरंभे रताश पडतुं बन्युं छे ।' चपल जेना प्रत्येक चरणमा छ चतुष्कल, एक षट्कल, एक चतुष्कल अने एक विकल होय तथा सोळ मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, ते द्विपदीनुं नाम चपल । चपल द्विपदीनुं उदाहरण : सुरसरि-तुंग-तरंग-सहोअर कित्ति 'चवल' तुह ठाण-ट्ठिउ जगु धवलइ । पुट्टि भमंतिहु रिउ-अवकित्तिहु कालत्तणु न हु निव-चूलामणि कवलइ ॥ ४९ 'हे नृपशिरोमणि, गंगानदीना ऊंचे ऊछळता तरंगोना जेवी श्वेत अने चपळ तारी कीर्ति, पोताने स्थाने स्थिर रहेल होवा छतां जगतने धोळी दे छे । तेनी पाछळ पाछळ भमती शत्रुओनी अपकीर्तिनी काळाश तेने स्पर्शती नथी ।' अमृत जेना प्रत्येक चरणमा छ चतुष्कल, एक षट्कल अने बे चतुष्कल होय तथा सोळ मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, ते द्विपदीनुं नाम अमृत । अमृत द्विपदी, उदाहरण : उण्हय 'अमय'मउह-मउह-वि दूसहु चंदण-पंकु-वि जलइ लयाहरू-वि । इअ तुह विरहिण तहि तणु-अंगिहि सुहय सुहाइ न किंपि वि पसिअहि दय करिवि ॥ ५० _ 'चंद्रनां अमृतशीतळ किरण तेने उष्ण लागे छे, चंदननो लेप दुःसह बन्यो छे, अने लताकुंज तेने बाळे छे । हे सुंदर, तारा विरहे कशुं पण ते कृशांगीने शाता आपतुं नथी । तुं दया करीने तेना पर कृपा कर ।' सिंहपद जेना प्रत्येक चरणमां नव चतुष्कल अने एक द्विकल होय, तथा सोळ मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, ते द्विपदीनुं नाम सिंहपद । सिंहपद द्विपदीनुं उदाहरण : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001454
Book TitleChhandonushasan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages204
LanguagePrakrit, Apabhramsha, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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