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छे तेथी ते छंद धवल कहेवाय छे । धवलछंदना त्रण प्रकार होय छे : आठ चरणनो, छ चरणनो, अने चार चरणनो ।'
नोंध :- धवलोनां उदाहरण सातवाहन कविनी काव्यरचनाओमां जोवा मळे छे. अहीं तो मात्र दिशा बताववा पूरतां उदाहरण आपवामां आवशे । श्रीधवल
जो आठ चरणना बनेला धवलमा एकी चरणोमां त्रण चतुष्कल अने एक द्विकल होय अने बेकी चरणोमां त्रण चतुष्कल होय, तो तेनुं नाम श्रीधवल । केटलाकने मते तेनु नाम वसंतलेखा छे ।
श्रीधवलछंद- उदाहरण : खीर-समुद्दिण लवण-जलहि, कुवलय कुमुइहि ।
कालिंदी सुरसिंधु-जलिण, महुमहणु हरिण ॥ कइलासिण सरिसउ हूं किरि, सो अंजण-गिरि ।
इह तुह जस-'सिरि-धवलि'उ पहु, किं पंडुरु नहु ॥ ४५ 'लवणसमुद्र जाणे के क्षीरसमुद्र बनी गयो, नीलकमळ श्वेतकमळ बनी गयां, यमुनानुं जळ गंगाजळ बनी गयुं, विष्णु शिव जेवा बनी गया, अंजनपर्वत कैलास जेवो बनी गयो-हे स्वामी, तारी कीर्तिलक्ष्मीथी धोळाईने कई वस्तु श्वेत नथी बनी गई ?' यशोधवल
__जो आठ चरणना धवलमां पहेला अने त्रीजा चरणमां त्रण चतुष्कल अने एक द्विकल होय, बीजा अने चोथा चरणमांत्रण चतुष्कल होय, अने बाकीनां चार चरणोमांथी पांचमा अने सातमा चरणोमां बे चतुष्कल अने एक त्रिकल होय, तथा छट्ठा अने आठमा चरणमां बे चतुष्कल अने एक द्विकल होय (अथवा तो बीजाने मते त्रण चतुष्कल होय), तो तेनुं नाम यशोधवल । ___ यशोधवलनुं उदाहरण : जे तुह पिच्छहिं वयण-कमलु, ससहर-मंडल-निम्मलु । जे-वि हु पालहिं भिच्च-कम्मु, थुणहिं जि निरुवमु विक्कमु ॥ जे-वि हु सासणु धरहिं, पाय-कमलु जे पणमहि । ताहं न लच्छी विमुह, पहु 'जस-धवलिअ'-दिसि-मुह ॥ ४६ 'जेणे पोतानी कीर्तिथी दिशाओनां मुख उज्ज्वळ कर्यां छे तेवा हे प्रभु, जे
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