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________________ [ 71] लोको चंद्रमंडळ जेवा निर्मळ तारा वदनकमळनां दर्शन करे छे, जे लोको तारा प्रत्ये सेवकवृत्ति सेवे छे, जे लोको तारा अतुल्य पराक्रमनी प्रशंसा करे छे, जे लोको तारुं शासन स्वीकारे छे, जे लोको तारा चरणकमळने प्रणाम करे छे, तेमनाथी लक्ष्मी कदी पण विमुख बनती नथी ।' कीर्तिधवल छ चरणना धवलमां जो पहेला अने चोथा चरणमां बे षट्कल अने एक द्विकल हो, बीजा अने पांचमा चरणमां बे चतुष्कल होय अने त्रीजा तथा छट्ठा चरणमां बे पंचकल अने एक चतुष्कल (अथवा तो एक पंचकल होय), तो तेनुं नाम कीर्तिधवल । कीर्तिधवल, उदाहरण : उक्करडा खवलउ गज्जउ, चिरु जुज्झण-मणु, उन्नामउ सिरु कसरुम लज्जउ । थक्कु महब्भरु तुहुँ कड्डहि, अन्नु न तिहुअणि, 'कित्ति धवल' विसाउ तुह वट्टइ ॥ ४७ 'गळियो बळद भलेने ऊकरडा ऊखेळे, लडवा माटे भांभर्या करे ने माथु ऊंच करे, हे धवलवृषभ तुं लज्जित न था । वच्चे अटकी पडेलो भारे बोजो आ त्रण लोकमां तारा सिवाय बीजो कोई खेंची काढी शके तेम नथी । तुं शुं काम खिन्न थाय छे ?' गुणधवल ___ चार चरणना बनेला जे धवलना एकी चरणोमां एक षट्कल अने बे चतुष्कल होय, तथा बेकी चरणोमां एक षट्कल, बे चतुष्कल, एक द्विकल अथवा तो त्रिकल होय, ते धवलनुं नाम गुणधवल । गुणधवल, उदाहरण : कद्दम-भग्गा मग्गुलया, वह-बहुला दुत्तर-जलुल्लया । तिवँ भरु वहसु 'गुण-धवलया', जिवँ केवइ न हसंति पिसुणया ॥ ४८ ___ 'हे गुणधवल (गुणवान धवल वृषभ), रस्ताओ कादववाळा होवाथी दुर्गम बनेला छे, तेमां दुस्तर जळ भरेला घणा वहेळा छे, तेथी तुं बोज एवी रीते वहेजे जेथी दुर्जनो केमेय तारी हांसी न उडावे ।' भ्रमरधवल जेमा एकी चरणोमां एक षट्कल, एक चतुष्कल अने एक विकल होय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001454
Book TitleChhandonushasan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages204
LanguagePrakrit, Apabhramsha, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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