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________________ [33] मुखर बन्यां छे, जेमां पोतानी उत्कट सुगंधथी दिशाओने मघमघावतां सप्तपर्ण खील्यां छे, जेणे पुष्कळ दूधना जेवा धवल काशना छोडोथी ग्रामजनोने हसता कर्या छे तेवी शरदऋतु आवी पहोंची होईने, हे प्रिय सखी, तुं तारा प्रियतम प्रत्ये रोष न कर ।' आरनाल जो द्विपदीना अंते एक गुरु वधारे होय, तो ते छंदनुं नाम आरनाल । आरनालनुं उदाहरण : अविरल - बाह-वारि-धारावलि - विअलण- सोण - लोअणाए, दारुण- पंचबाण-बाणाहय-हिअय- फुरंत - वेअणाए । तुह विरहम्मि चंद-मंदानिल- चंदण - ताव- जालिआए, अहिणव- 'मार नाल' - वणयं पि तीइ तं कुणसि बालिआए ।। ९८ 'हे कामदेवना नूतन अवतार समा, तारा विरहमां, सतत अश्रुधारा वहेवाथी जेनां लोचन रातां थई गयां छे, निष्ठुर कामदेवनां बाणोना प्रहारथी जेना हृदयमां वेदना प्रगटी रही छे, जे चंद्रना, धीमे वाता पवनना अने चंदनना तापथी बळी रही छे तेवी ते बाळा साथे तुं वात पण करतो नथी ?' कामलेखा जो द्विपदीना प्रत्येक चरणमां छेल्ला गुरुनी पहेलांनो एक लघु ओछो होय, तो ते छंदनुं नाम कामलेखा । कामलेखानुं उदाहरण : राई चंद-किरण-धवला मणहरणा पुप्फ-माला, नीलुप्पल - पसूण- परिवास-महग्घा जुण्ण - हाला । गेहं रयण-दीव - इ - इरं गीअं पंचमेणं, तेण विणा असारमखिलं खु 'कामलेहा' - धरेणं ॥ ९९ 'जेना हृदयमां कामदेव वस्यो छे तेने माटे ज्योत्स्नाथी धवल रात्रि, मनहर कुसुममाळा, नीलकमलना पुष्पनी सुगंधे मघमघती जूनी मदिरा, रत्नदीपथी अजवाळेलुं सुंदर घर अने पंचमराग - एना (= प्रियतमना ) विना बधुं ज असार होय छे ।' चंद्रलेखा जेमां प्रत्येक चरणमां एक षट्कल, चार चतुष्कल अने एक द्विकल होय, ए छंदनुं नाम चंद्रलेखा । चंद्रलेखानुं उदाहरण : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001454
Book TitleChhandonushasan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages204
LanguagePrakrit, Apabhramsha, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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