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वीरं संभरामि तारण-तरंडयं सम-पसन्न-सोहं,
पडिओ दुत्तरस्स भव-सायरस्स लहरी-भरम्मि सोहं ॥ ६९ ___ 'जे पोतानी निर्मळ ज्ञानदृष्टिथी समग्र भुवनने जाणे छे, जेनुं चित्त विशुद्ध छे, जेमां सर्व उग्र कर्मो बळी गयां छे, जेणे पोताना अनंतज्ञानथी जगतना लोकोने चमत्कृत कर्या छे, जे मध्यस्थ छे अने प्रसन्न शोभा धारण करे छे, जे तारणहार त्रापारूप छे, एवा वीरजिनने, दुस्तर भवसागरना तरंगोमां पडेलो एवो हुं स्मरूं छु ।' सुंदरागलितक . जेमां प्रत्येक चरणमां बे पंचकल अने एक त्रिकल होय अने चरणो यमकबद्ध होय, ते छंदनुं नाम सुंदरागलितक ।
सुंदरागलितकनुं उदाहरण : नरवरिंद तुह कित्तिआ, कत्थ कत्थ न पहुत्तिआ । भरिअ-गयण-महि-कंदरा, कंद-संख-ससि-'सुंदरा' ॥ ७०.
'हे नरेन्द्र, कुंद पुष्प, शंख अने चंद्र जेवी धवल तारी कीर्ति के जेणे आकाश अने पृथ्वीना अवकाशने भरी दीधो छे ते क्यां क्यां नथी पहोंची ?' भूषणागलितक
जेमा प्रत्येक चरणमां बे पंचकल अने बे त्रिकल होय अने चरणो यमकबद्ध होय ते छंदनुं नाम भूषणागलितक ।
भूषणागलितकनुं उदाहरण : पिच्छ पीवर-महा-पओहरा, कस्स कस्स न वयंस मणहरा ।। विप्फुरंत-सुर-चाव-कंठिआ, 'भूसणा' नह-सिरी उवट्ठिआ ॥ ७१
'हे मित्र, जो तो, पुष्ट, मोटा पयोधर (१. वादळां, २. स्तन)वाळी, जेणे झळहळता इंद्रधनुषनी कंठी, आभूषण पहेर्यु छे तेवी, आ आवी पहोंचेली श्रावण मासनी शोभा को, कोनुं मन नथी हरी लेती ?' मालागलिता
जेमां प्रत्येक चरणमां एक चतुष्कल, एक पंचकल, बे चतुष्कल, एक पंचकल, बे चतुष्कल अने एक एक लघु गुरु होय, ते छंदनुं नाम मालागलिता ।
__ मालागलिता, उदाहरण : न मुणिज्जइ गलाउ रयण-माला गलिइआ' न गणिज्जइ भग्गओ,
मणि-वलय-निअरो न य जाणिज्जइ अंसु-अंचलो वि हु विलग्गओ ।
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