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________________ [22] चोलुक्क-कुलंबर-दिणमणि तुह अवलोअण-निमित्त-धावंतिहिं, मयरद्धय-बाण-धोरणि-विद्ध-हिअइहिं नारिहिं हरिसिज्जंतिहिं ॥ ७२ 'हे चोलुक्यवंशना गगनमां सूर्यसमा (राजा कुमारपाळ), जेमनुं हृदय कामदेवनी बाणावलिथी वींधाई गयुं छे तेवी, तने जोवाने माटे हर्षावेशमा दोडती स्त्रीओने तेमना गळामांथी सरकी पडेली रत्नमाळानुं भान नथी रहेतुं, भांगी पडेला तेमना रत्नकंकणने ते गणकारती नथी, तेम तेमना (पगमां) अटवाता वस्त्रांचलनी तेमने खबर रहेती नथी ।' विलंबितागलितक जेमा प्रत्येक चरणमां एक षट्कल अने चार चतुष्कल होय, बेकी स्थानोमां जगण अथवा तो चार लघु होय, अने चरणो यमकबद्ध होय ते छंद- नाम विलंबितागलितक । विलंबितागलितकनुं उदाहरण : मसि-सब्बंभयारि घण-तिमिर-मालिआओ, अह समुल्लसंति दुव्वारमालिआओ । वासय-पंजरेसु सुत्ताओ सारिआओ, तह अविलंबिआ'ओ जंति अहिसारिआओ ॥ ७३ ___हे सखीओ, जुओ तो मश जेवो काळो गाढ दुर्वार अंधकार बधे व्यापी गयो छे, सारिकाओ एमना रहेवाना पांजरामां ऊंघी गई छे अने अभिसारिकाओ झडपथी जई रही छे ।' खंडोद्गत जेमां प्रत्येक चरणमां अंते एक गुरु होय तेवो चतुष्कल, एक पंचकल, पांच चतुष्कल अने एक पंचकल होय तथा बेकी स्थाने जगण के चार लघु होय ते छंदनुं नाम खंडोद्गत । ___खंडोद्गत, उदाहरण : 'खंडुग्गय मिंदुबिंबमिणमज्ज-वि अहिणव-किंसुअ-कुसुम-सरिसयं, न हु जा चंदिमाइ तिमिर-भरं किर परिदलिऊण पयडइ हरिसयं । वम्मीसर-भडस्स सर-निअरेहिं अइ-दूसहिहिं पहरिज्जंतओ, अहिअं ता संपइ अहिसरणे पयट्टइ जुवइ-जणो-तुवरंतओ ॥ ७४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001454
Book TitleChhandonushasan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages204
LanguagePrakrit, Apabhramsha, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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