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________________ [20] वडे सूर्यनां तीक्ष्ण किरणो अवरोधायां छे–एवं आ सरोवर जो, जे देवो, विद्याधरो अने किन्नरोनुं एकमात्र सतत विलासगृह छ ।' मुग्धगलितक जेमां प्रत्येक चरणमां एक षट्कल पछी आठ चतुष्कल होय अने चरणांते एक गुरु होय, एकी स्थाने जगण न होय अने बेकी स्थाने जगण अथवा चार लघु होय, तथा चरणो यमकबद्ध होय, ते छंदनुं नाम मुग्धगलितक । मुग्धगलितकनुं उदाहरण : नमिर-सुरासुरिंद-सिर--रयण-मउड-रुइ-भर-करंबिअ-चरण-कमल-नहमणि, सयल-तिलोअ-लोअ-लोअण-विहुरण-मोहंधयार-निअर-विहडण-नहमणि । न नवसि जइ जुआइ-जिणइंदममल-केवल-सिरि-कुलहरमिह भव-भयहणणं, ता वयंस तुह रयणं चिअ कराउ 'मुद्ध गलिअं' किर विहलमिदं खु जणणं ॥६८ 'जेनां चरणकमळना नखमणिओ, वंदन करता देवेन्द्र अने असुरेन्द्रनां मस्तक परनां मुकुटोनां रत्ननी विपुल कांतिथी चित्रित थयेला छे, जे त्रिभुवनना सर्व जनोनां नेत्रोने पीडता गाढ मोहरूपी अंधकारनो नाश करता सूर्यरूप छे, जे निर्मळ केवळ ज्ञानरूपी लक्ष्मीनुं पियर छे, जे भवना भयने हणनार छे एवा युगादि-जिनेन्द्रने (ऋषभदेव तीर्थंकरने) जो तुं अहीं वंदन नहीं करे, तो हे मित्र, ते जाणे के तारु हस्तगत रत्न खोई नाख्युं अने तारो आ जन्म खरेखर निष्फळ गयो ।' उग्रगलितक ___ जो प्रत्येक चरणमां षट्कल पछी छ चतुष्कल होय, प्रत्येक चरणने अंते गुरु होय, एकी स्थाने जगण न होय, बेकी स्थाने जगण अथवा तो चार लघु होय अने चरणो यमकबद्ध होय, तो जे छंद बने तेनुं नाम उग्रगलितक । उग्रतलितकनुं उदाहरण : निम्मल-नाण-दिट्ठि-अवलोइअ-भुवणयलं विसुद्ध-चित्तं, 'उग्ग-गलिअ'-समग्ग-कम्मं निरवहि-नाण-रअ-जग-चित्तं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001454
Book TitleChhandonushasan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages204
LanguagePrakrit, Apabhramsha, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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