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________________ [ 132] 'रेवा नदीमा' घणुं जळ (अथवा तो 'घणां बगलां') छे ।' गणद्विपदी जेना प्रत्येक चरणमा छ मात्रा होय, ते द्विपदीनुं नाम गणद्विपदी । गणद्विपदीनुं उदाहरण : निअ जुवइ, 'गणदु' वइ ॥ ६० 'पतिए पोतानी पत्नी सन्मान करवू ।' स्वरद्विपदी जेना प्रत्येक चरणमा एक चतुष्कल अने एक त्रिकल ए प्रमाणे सात मात्रा होय, तेनुं नाम स्वरद्विपदी ।। स्वरद्विपदीनुं उदाहरण : 'पसरदु वइ,' अखलिअ-गइ ॥ ६१ 'पति अस्खलित गतिए आगळ वधो ।' अप्सरा जेना प्रत्येक चरणमां एक पंचकल अने एक द्विकल ए प्रमाणे सात मात्राओ होय, ते द्विपदीनुं नाम अप्सरा । अप्सरा द्विपदीनुं उदाहरण : उअ 'अच्छा ', गय-मच्छरा ॥ ६२ _ 'जो, अप्सरा द्वेषरहित होय छे ।' वसुद्विपदी जेना प्रत्येक चरणमां आठ मात्रा होय, तेनुं नाम वसुद्विपदी । वसुद्विपदीनुं उदाहरण : सु तव सुदु वइ', जयइ नरवइ ॥६३ 'ए प्रख्यात नृपति के जे तारो पति छे. तेनो जय हो ।' करिमकरभुजा जेना प्रत्येक चरणमां बे चतुष्कलनी बनेली आठ मात्राओ होय, ते द्विपदीन नाम करिमकरभुजा । करिमकरभुजा द्विपदीनुं उदाहरण : 'करिमयरभुओ', उव्व-हुअभुओ ॥ ६४ 'वडवानळ हाथीओ अने मगरोने भरखी जाय छे ।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001454
Book TitleChhandonushasan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages204
LanguagePrakrit, Apabhramsha, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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