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________________ [ 131] मालाध्रुवक जे द्विपदीमां चाळीश, एकताळीश के बेताळीश मात्राओ होय, ते द्विपदीनुं नाम मालाध्रुवक । चाळीश मात्रानी मालाध्रुवक द्विपदीनुं उदाहरण : • तुह पुहइसर-सेहर कित्ति अकित्तिम सुरहिअ-दिसि-मुह जावँहि सग्गि पइट्टिअ । तावहिं तक्खणि सुरसुंदरि-लोअहु सुरतरु-कुसम-'माल ध्रुव' हअ मण-उव्विट्रिअ ॥ ५७ _ 'हे नृपशिरोमणि, जेवी तारी अकृत्रिम कीर्ति दिशाओने सुगंधित करती स्वर्गमा पेठी, तेवी ज अप्सराओने मन कल्पवृक्षोनां पुष्पोनी माळा निश्चितपणे अकारी बनी गई।' आ ज प्रमाणे एकताळीश मात्रानी अने बेताळीश मात्रानी मालाध्रुवक द्विपदीनां उदाहरण समजवां । नोंध :- आ प्रमाणे चोसठ प्रकारनी द्विपदी ध्रुवा छे । ध्रुवा अने द्विपदी वच्चे भेद आ प्रमाणे छे : सिंहावलोकितार्थेषु, विज्ञप्तौ संविधानके । मङ्गले च ध्रुवा प्रोक्ता, द्विपद्यन्यत्र कीर्त्यते ॥ ५७ . ___ 'अर्थ- सिंहावलोकन करवा माटे, विनंती माटे अने मंगळ विधि होय त्यां ध्रुवा कहेवाय छे, पण ते अन्यत्र द्विपदी कहेवाय छे ।' अन्य प्रकारनी द्विपदी द्विपदीओनो जे एक बीजो प्रकार छे, तेनी व्याख्या आ प्रमाणे छ : विजया जेना प्रत्येक चरणमां चार मात्रा होय, ते द्विपदीनुं नाम विजया । विजय द्विपदी, उदाहरण : सजया, 'विजया' ॥ ५८ "विजयादेवी विजयी छे ।' रेवका जेना प्रत्येक चरणमां पांच मात्रा होय, ते द्विपदीनुं नाम रेवका । रेवका द्विपदीनुं उदाहरण : बहुवया, 'रेवया' ॥ ५९ Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.001454
Book TitleChhandonushasan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages204
LanguagePrakrit, Apabhramsha, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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