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________________ . [130] शतपत्र द्विपदी- उदाहरण : एक्कु पसाड् जइ दिअवइ, करु तु-वि मउलइ, 'सयवत्तु' निरारिउ आउलउं। पहु तुह पुण कर-सरसीरुहु, दिअवइ-लक्खि-वि, दिट्ठइ फुडु विअसइ अग्गलउं ॥५४ 'हे महाराज, जो द्विजपति (= चंद्र) एक पण कर (=किरण) प्रसारे तो पण शतपत्र (= सो पांखडीवाळु कमळ), व्याकुळ बनीने निश्चितपणे बीडाई जाय छे। परंतु लाख द्विजपति(= उत्तम ब्राह्मण)ने जोवा छतां तारुं करकमळ प्रगटपणे भरपूर विकसे. छे ।' अतिदीर्घ जेना प्रत्येक चरणमां नव चतुष्कल अने एक त्रिकल होय तथा चौद मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, ते द्विपदीनुं नाम अतिदीर्घ । अतिदीर्घ द्विपदी उदाहरण : जइ जाहिं सुरसरिअ जइ गिरि-, निज्झर सेवहिं जइ, पइसहिं काणण तरु-संडय। रिउ-निव तु-वि न-वि छुट्टहिं पहु, तुज्झ पयावहु, कालहु 'अइ-दीहर' भुय-दंडय ॥ ५५ 'अतिदीर्घ भुजदंडवाळा हे महाराज, शत्रुराजाओ स्वर्गगंगा सुधी पहोंची जाय, पहाडी झरणांने सेवे अथवा तो जंगलनी झाडीमां पेसी जाय, तो पण काळसमा तारा प्रतापथी तेओ छूटी शकता नथी । मत्तमातंगविजूंभित जेना प्रत्येक चरणमां बे षट्कल, छ चतुष्कल अने एक त्रिकल होय तथा चौद मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, ते द्विपदीनुं नाम मत्तमातंगविजूंभित । मत्तमातंगविजूंभित द्विपदीनुं उदाहरण : पयडिअ-लंछण-मय-लेहिण, उल्लासिअ-कर-, दंडिण ताराहरणिण निसि-सरिण । उअ नीसंकिण भउ विरहिणि-, जणहु जणिज्जइ, असमु 'मत्त-मायंग-विअंभिइण' ॥५६ 'विरहिणीओने माटे मदमत्त हाथीनी जेम चंद्र अतिशय भय प्रगटावे छ । तेनुं लांछन मदलेखा जेवू, तेनां किरणो (कर) सूंढ समा अने तारा आभरण समा लागे छ ।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001454
Book TitleChhandonushasan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages204
LanguagePrakrit, Apabhramsha, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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