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खंजक - प्रकरण
उपर जेमनी व्याख्या आपी ए गलितको जो यमक वगरना पण अनुप्रासवाळा अने समान चरणवाळा होय, तो ते छंदो खंजक कहेवाय छे ।
हवे खंजकना विशिष्ट प्रकारो वर्णवीए छीए ।
खंजक
मां प्रत्येक चरणमा बे त्रिकल गणो होय, त्रण चतुष्कल होय, एक त्रिकल होय, एक गुरु होय तथा जेमां यमक न होय पण अनुप्रास होय ते छंदनुं नाम खंजक |
खंजकनुं उदाहरण :
मत्त- महुअर - मंडल - कोलाहल - निब्भरेसुं,
उच्छलंत - मलय- वाय-' खंजीक 'य- सिसिर
- परहुअ - कुडुंब - पंचम - सरेसुं ।
र-वया घणेसुं,
विलसइ का विचित्त समयम्मि सिरी वणेसुं ॥ ८३
'जेमां मदमत्त मधुकरमंडळीनो कोलाहल थई रह्यो छे, जेमां कोकिलाओनो पंचम स्वर ऊछळी रह्यो छे, जेमां शिशिरऋतुनो व्यापार मलयपवने तिरस्कार्यो छे, तेवी चैत्र मासनी अवर्णनीय शोभा सघन वनोमां विलसी रही छे ।'
महातोणक
जेमां प्रत्येक चरणमां एक पंचकल, एक चतुष्कल, एक पंचकल, एक चतुष्कल अने एक पंचकल होय, ते छंदनुं नाम महातोणक । महातोणकनुं उदाहरण :
तुह पयावेण वि दव - दूसहेण महिलए,
दड्ड- दरिअ - वेरि-मंडलेण इह पसाहिए ।
'महा- तूणय' - दरि - विवर- मज्झम्मि अहो - मुहा,
लज्जिअ-व्व ठिआ नरनाह तुज्झ सिलीमुहा ॥ ८४
'हे महाराज, दावानळ समा दुःसह तारा प्रतापथी जे गर्विष्ठ शत्रुवर्ग बळी गयो छे तेने लीधे पृथ्वीमंडळनी उपर तें तारुं शासन स्थापी दीधुं होवाथी तारां बाणो गुफा जेवा भाथामां जाणे के लज्जित थयां होय तेम नीचे मोढे पड्यां रह्यां छे ।'
सुमंगला
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जेमां प्रत्येक चरणमां चार चतुष्कल अने एक गुरु होय, ते छंदनुं नाम
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