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'अत्यारे उदय पामती सोनावी चंद्रलेखा केवी शोभे छे ? जाणे के आकाशरूपी वराहनी दंष्ट्रा, जाणे के महासुभट कामदेव- अग्निमांथी बहार काढेलु तीक्ष्ण क्षुरप्र (=एक तीक्ष्ण धारवाळु दातरडाना आकारनुं शस्त्र ), जाणे के प्राचीनुं (=पूर्व दिशानुं) किंशुकनुं कर्णाभरण ।'
उपगाथ, उदाहरण : समरमहोअहिमुब्भड-करि-मयरं उच्छलंत-रुहिर-सलिलमसिवर-दाढिआइ सहसत्ति मेइणि उद्धरंतओ महिहराण आकंपणाई विरइंतो । 'उअ गाह'इ चोलुक्कस्स आइ-कोलु व्व भुअ-दंडो ॥ ४६
__'जेमा प्रचंड हाथीओरूपी मगरमच्छो छे, लोहीरूपी जळ उछळे छे तेवा समरांगणरूपी महासागरमाथी पोताना खड्गरूपी दंष्ट्रा वडे सहसा पृथ्वीनो उद्धार करतो, पहाडोने कंपावतो, चौलुक्यराजनो, आदि वराह जेवो भुजदंड, जो, संग्रामसागरने पार करे छ ।' गाथिनी
जो उपगाथ पछी बे चतुष्कल उमेरवामां आवे तो जे छंद बने ते गाथिनी। गाथिनीनुं उदाहरण :
सिरिमूलराय-भूवइ-कुल-गयण-मिअंक तिहुअण-ललाम जय-सिरिनिवास जस-भर-भरिअ-दिअंत रिउ-भड-कयंत निव-कुमरवाल भणिमो अइ-गहिराइं कह तुज्ज चरिआई। सयल-गुण-'गाहिणी' जस्स न किर चउवयण-वाणी-वि ॥ ४७
___ 'श्रीमूळराज भूपतिना कुलरूपी आकाशमां चंद्र समान, ऋण भुवनना भुषणरूप, विजयश्रीना निवासस्थानरूप, पोताना विशाळ यशथी दिगंतने भरी देनार, शत्रुना सुभटोना काळरूप, हे राजा कुमारपाळ, तारा अत्यंत गंभीर चरित्रने अमे कई रीते वर्णवी शकीए ? - जेना समग्र गुणोनुं ब्रह्मानी वाणी पण कदाच ग्रहण न करी शके। मालागाथ
जेमां गाथिनी पछी इच्छानुसार बब्बे चतुष्कल उमेरवामां आवे तेथी जे छंद बने ते मालागाथ।
मालागाथनुं उदाहरण : इह 'माला गाहाण व वयंस पेच्छसु नवंबुवाहाण गयण-विउल-सरवरम्मिविमुक्क-घोर-घोर-साण विज्जु-जीहा-विहीसणाण बहल-वारि-निचय
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