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आवी ज गाथाओ 'वज्जालग्ग'मां पुरोगामी कविओमांथी उद्धृत करेल छे, जे सूचवे छे के एवी रचनाओनी एक दीर्घकालीन परंपरा हती ।।
आ बाबतमां जे केटलीक हकीकतो आपणे ध्यानमां लेवी जोईए ते ए छे के 'वज्जालग्ग' नामनो सुभाषितसंग्रह जयवल्लभ (के जगद्वल्लभ) नामना श्वेतांबर जैन कविए अटकळे दसमी अगियारमी शताब्दी लगभग संपादित करेलो छ । तेमां जोशी, पुस्तकलेखक, वैद्य, साधुसंन्यासी, कोलु पीलनार, सांबेलुं अने दोशीने लगती गाथाओ-मुक्तको द्विअर्थी छे, अने बीजो अर्थ सर्वत्र आपणी अत्यारनी रुचिनी दृष्टिए अश्लील छे—संभोगशृंगारना स्थूळ संकेतोवाळो छ । तेमां ध्वनि के व्यंग्य अर्थ होवाथी चातुर्यनी दृष्टिए तेवां मुक्तको आस्वाद्य गणातां । चार पुरुषार्थमां काम पुरुषार्थमां स्थूळसूक्ष्म सर्व प्रकारना शृंगारनो समावेश थतो । उदाहरण तरीके विपरीत सुरतने लगती संस्कृत-प्राकृत रचनाओनो खासो मोटो संग्रह थाय । आ प्रकारना मुक्तको रचवानी परंपरा हती, अने युवानवर्ग बधी संस्कृतिओनी साहित्यपरंपराओमां आ प्रकारनी कवितानो चाहक रह्यो छे । परंपरानुं अनुकरण एकाद मुक्तकमां हेमचंद्रे कर्यु ते तेमना माटे तद्दन स्वाभाविक हतुं । युगयुगनी रुचि अने अश्लीलता अंगेना धोरणमां सारो एवो फरक होवा, पण आपणे जाणीए छीए ।
छेवटे कविविषयक एक मुक्तकथी आपणे समापन करीशुं :
जे कविओ नवीन अर्थ- निर्माण करवा असमर्थ छे, अने चर्वितचर्वण कर्या करे छे, ते बापडा वागोळ्या करतां पशुओ जेवां ज छे । (७.८२) ।
आशा छे आ उदाहरणो परथी मुक्तक-कवि तरीकेनी हेमचंद्राचार्यनी ऊंची प्रतिभानी काईक झांखी थशे, अने केटलांक मुक्तको संस्कृत-प्राकृत कविताना रसिको, मस्तक प्रशंसामा अवश्य डोलावशे ।।
"त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित'मां ख्यात इतिवृत्तनी सामग्री होवा छतां महाकाव्यनो आदर्श होवाथी प्रसंगवर्णनो अने भावनिरूपणोमां काव्यत्व माटे पूरो अवकाश हतो । 'व्याश्रय'नुं नाम दर्शावे छे तेम व्याकरणना नियमोने उदाहृत करवाना लक्ष्यनी साथोसाथ महाकाव्य रचवानुं लक्ष्य पण हतुं; अने तेमां 'भट्टिकाव्य' जेवानुं अनुसरणीय दृष्टांत पण हतुं । 'छंदोनुशासन'मां छंदनुं नाम गूंथवाना नाना नियंत्रण सिवाय मुक्तक रचवा माटे कल्पनाने पूरतो अवकाश हतो । ज्यारे 'देशीनाममाला'नां उदाहरणोमां उदाहरणीय शब्दसामग्रीथी हेमचंद्रना हाथ बंधायेला
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