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३० हाथ कदी मद्यपात्र विनानो होय छे खरो ? (१.११८)
जेमां गणपतिना गर्जने नाची रहेला कात्तिकेयना मोरना केकारवे कंठे वीटळायेलो नाग त्रस्त बन्यो छे एवं रुद्रनुं तांडवनृत्य चाले छे । (३.५)
आमां ध्वनित थती विनोदवृत्ति नीचेनां मुक्तकमां प्रकटरूप धरे छे :
शंखोज्ज्वल दुकूल पहेरीने जतो गामना मुखीनो जुवान दीकरो माथा पर कागडो चरकतां काकीडानी जेम ऊंची डोके जोई रह्यो छे । (३.४१)
नीचे- मुक्तक फटाणुं होवानो पूरो संभव छे :
बनेवी वरराजा ! तुं गर्भस्थ बच्चानी जेम कशो आचार जाणतो नथी अने कोई कंजूस चमारनी जेम शेकवाने सळिये सहेज चोंटी रहेलुं मांस पण चाटी रह्यो छे । (७.४४)
जयसिंह सिद्धराजना 'बर्बरकजिष्णु' बिरुदना आधारभूत प्रसंगनो निर्देश नीचेना मुक्तकमां थयेलो छ :
हे सिद्धराज, तारी तीक्ष्ण कटारीथी जेनुं कपाळ चीराई गयुं छे एवो, हांडा जेवडी फांदवाळो बाबरो गळिया बळदनी जेम कांटाळी रीगणीथी छवायेला नदीना पाणीमां आळोटे छे । (२.४)
पतित भिक्षु ए भाण अने प्रहसननो कविप्रिय विषय हतो । हेमचंद्रे तेनुं पण एक आस्वाद्य चित्र आप्यु छ :
जवना ढगनी कांति धरती, रथचक्रसमी श्रोणीवाळी, मन्मथना दुर्ग समी शयनगत गणिकाने संभारीने रुद्राक्षनी माळा फेरवतो भिक्षु मूर्छ पामे छे । (२.८१)
नीचेनां जेवां सुभाषितो शामळभट्टनी तथा गई काल सुधी चारणोनी रचनाओमां मळतां रह्यां छे । हेमचंद्रनी पूर्वेथी आ परंपरा चाली आवे छे :
घोडा शोभे जीनथी, गामो शोभे गोचरथी, कण शोभे तुषथी (एटले डूंडारू पे), महिला शोभे नीवीबंधथी अने घरो शोभे घरडाथी । (३.४०)
दहीं शोभे तरे, तलवार शोभे मठे, कुवा शोभे अथाग जळे, (संग्रामनी) विकट वेळा शोभे भडे, गाम शोभे धणे । (५.२४)
__ दरिद्रनुं कशुं मान नथी, उखडेलानुं गौरव नथी, षंढने लिंग नथी, ने स्थापना विनाना पत्थरने पूजा नथी । (४.५)
पोताना अवाजथी घुवड प्रसन्न थाय, श्राद्धपक्षथी ब्राह्मण प्रसन्न थाय,
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