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________________ [ 111] गंधोदकधारा जेना प्रत्येक चरणमां एक षट्कल अने बे चतुष्कल होय, अथवा तो त्रण चतुष्कल अने एक द्विकल होय, ते चतुष्पदीनुं नाम गंधोदकधारा । गंधोदकधारानुं उदाहरण : रमणि-कवोल-कुरंगमय-, पत्त-लयाविल-अंसु-भवि । घण-'गंधोदय-धार'-भरि, वइरिअ तुह पहायंति सवि ॥ १२६ _ 'तारा बधा शत्रुओ तेमनी स्त्रीओना गाल परनी कस्तूरीनी पत्रभंगीथी खरडायेलां आंसुमाथी प्रगटेली भरपूर सुगंधीजळनी धारामां नहाई रह्यां छे ।' पारणक जेना प्रत्येक चरणमां त्रण चतुष्कल अने एक त्रिकल होय, अथवा तो एक षट्कल, एक चतुष्कल अने एक पंचकल होय, ते चतुष्पदीनुं नाम पारणक छे । पारणकनुं उदाहरण : कइअहिं होएसइ तं दिवसु, आणंद-सुहा-रस-पावणउं । होही प्रिय-मह-ससि-चंदिमइ, जहिं नयण-चओरहं 'पारणउं' ॥ १२७ 'आनंदरूपी अमृतरस प्राप्त करावतो एवो दिवस क्यारे आवशे, ज्यारे (मारां) नेत्ररूपी चकोर प्रियाना चंद्रवदननी चांदनीथी पारणुं करशे ?' पद्धडिका जेना प्रत्येक चरणमां चार चतुष्कल होय, ते चतुष्पदीनुं नाम पद्धडिका। पद्धडिकानुं उदाहरण : पर-गुण-गहणु स-दोस-पयासणु, महु-महुरक्खर हिअ-मिअ-भासणु । उवयारिण पडिकिउ वेरिअणहं, इअ 'पद्धडी' मणोहर सुअणहं ॥१२८ 'पारकाना गुण लेवा, पोताना दोष प्रगट करवा, मधमीठां, हितकारी अने मापसरनां वचन बोलवां, शत्रुओनो उपकारथी प्रतिकार करवो-एवो सुंदर होय छे सज्जनोनो व्यवहार ।' नोंध :- त्रीजा अध्यायमां (३,७३)जे 'पद्धति' नामना छंदनी व्याख्या आपी छे, ए पद्धतिमां पण प्रत्येक चरणमां चार चतुष्कल होय छे ए खरं, पण त्यां एवो पण नियम छे के एकी स्थाने रहेला चतुष्कलमां जगण न आवी शके अने छेल्ला चतुष्कलनुं स्वरूप कां तो जगणनुं होय, अथवा तो चार लघु- होय, ज्यारे अहीं जे पद्धडिकानी व्याख्या आपी छे तेमां एवो कोई नियम लागु पडतो नथी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001454
Book TitleChhandonushasan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages204
LanguagePrakrit, Apabhramsha, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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