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कल्पवृक्षनां पुष्पोनो ताजो हार नाखे छे ।'
___ अवदामनुं उदाहरण : 'ओ दामाई' रयंतीइ तीइ कामस्स पूअण-निमित्तमिह तुह-समागमूसवं तद्दिअहमहिलसंतीए नव-कुवलयच्छीए । कुसुम-समिद्धि-विरहिअं उज्जाणं निम्मिअं सयलं ॥ ५२
- 'खीलेला नीलकमल जेवां नेत्रवाळी तेणे, जे दिवसे तारा मिलननो उत्सव थवानो छे ते दिवसनी अभिलाषा राखीने, कामदेवनी पूजा निमित्ते फूलमाळाओ गूंथवा माटे आखा उद्यानने तेनी पुष्पसंपत्ति वगरनुं बनावी दीर्छ ।'
संदामनुं उदाहरण : अणुरयणि चंद-किरण-प्फंस-प्पसरंत-चंदकंत-सिला-नी' संदाम'य-रससिंचिज्जमाण-तरुतल-निसण्ण-रइ-केलि-खिन्न-विज्जाहर-मिहुणो । जिण-चरण-रय-पवित्तो रेहइ सिरि-उज्जयंत-गिरी ॥५३
'ज्यां प्रत्येक रात्रे चंद्रकिरणना स्पर्शथी चंद्रकांत मणिनी शिलामांथी गळता अमृतरसे छंटाता वृक्षनी नीचे रतिक्रीडाथी थाकेला विद्याधर युगलो बेठां होय छे एवो तीर्थंकरोनी चरणरजथी पवित्र श्रीऊर्जयंत पर्वत शोभी रह्यो छे ।'
उपदामनुं उदाहरण : सिरिमूलराय भूवइ-कुल-गयण-मिअंक तुह दिस-जयम्मि दुद्धर-तुरंगखुर- पुडुक्खायमाण-मेइणी-बहल-धूलि-पडलेण पंकिलिज्जंत-सायरसलिल- सयणिज्जे । 'उअ दामो'अरमेण्हि लच्छी अइ-दुक्करं रमइ ॥ ५४
___ 'हे श्रीमूळराज, राजकुळना गगनमां चंद्र समान, तारा दिग्विजय वेळा वेगथी दोडता घोडाओनी खरीना डाबलाथी खोदाती धरतीमांथी ऊडता धूळना जब्बर गोटाओने लीधे, सागरना जे जळ पर पोतानी शैया छे ते जळ डहोळाई जतां हवे दामोदर साथेनी लक्ष्मीनी क्रीडा घणी दुष्कर बनी गई छे ।'
दामिनीनुं उदाहरण : सिरसिद्धराय--नंदण तुमयं आयंतमिक्खिउं झत्ति धाविरीए इमाइ पज्जाउलत्त-वस-सिढिल-बद्ध-गंठि ल्हसिउण रमण-त्थलाउ चरणग्गएसु रइअ-घणावेढं । मणि-कंचि-दाम निम्मिअ-गइ-वलणं 'दामिणी' होइ ॥ ५५ 'हे श्रीसिद्धराजना पुत्र (कुमारपाळ), तने आवतो जोवा माटे दोडती आ
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