SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [2] तससु नरव-तप्पनेसुं एकातस-तनु-धलं लुद्दं ॥ ४ 'प्रणयरुष्ट गौरीने ( मनाववा तेने) पगे लागेला अने तेथी ( चरणनां) दस नखदर्पणमां जेमनां प्रतिबिंब पड्यां छे तेवा एकादश मूर्तिधारी रुद्रने प्रणाम करो' । ए ज प्रमाणे, बीजी भाषाओनां उदाहरण पण जाणवां । I आर्याना स्वरूपनी बाबतमां एवो पण नियम छे के ज्यारे तेना पूर्वार्धमा छठ्ठो चतुष्कल चार लघुनो बनेलो होय त्यारे पद बीजा लघुथी शरू थतुं होवुं जोईए । एनो अर्थ ए के छठ्ठा चतुष्कलना पहेला लघु पछी यति होय । ते ज प्रमाणे सामा चतुष्कलमां चार लघु होय त्यारे पद पहेला लघुथी शरू थतुं होवुं जोईए । एटले के छठ्ठा गणने अंते यति होवो जोईए । उत्तरार्धमां ज्यारे पांचमो चतुष्कल चार लघुनो बनेलो होय त्यारे पहेला लघुथी पद शरू थतुं होवुं जोईए । एनो अर्थ ए के चोथा चतुष्कलने अंते यति होवो जोईए । जेम के एकाङ्ग चतुरम्बुराशि- मुद्रित-भू-भारोद्धार - चतुर- भुज- परिघः । - वीर- तिलकः श्रीमानिह जयति सिद्धेशः ॥ ५ 'चार समुद्र साथेनी धरित्रीनो भार ऊंचकवामां जेनी भुजार्गला दक्ष छे एवा वीर शिरोमणि श्रीमान सिद्धराज विजयी वर्ते छे ।' आर्याना प्रकारो पथ्या जेना बन्ने अर्धमा पहेला त्रण चतुष्कल पछी यति होय ते पथ्या । जेम के नेपथ्यानि निरस्यति, संत्रस्यति मत्त - कोकिला - नादात् । निन्दति चेन्दुमयूरवांस् त्वद्विरहे नः सखी सुभग ॥ ६ 'हे सुंदर, तारा विरहे अमारी सखी वस्त्रो दूर करी दे छे, कोयलना टहुकारथी त्रासे छे, अने चंद्रकिरणोने निंदे छे ।' विपुला बन्ने अर्धमा पहेला त्रण चतुष्कल पछी जेमां यति न होय ते विपुला । तेना त्रण भेद छे । मात्र पूर्वार्धमां ए रीते यति न होय ते आदिविपुला के मुखविपुला । उत्तरार्धमां ते रीते यति न होय ते अंतविपुला के जघनविपुला । बन्ने अर्धमां वो यति न होय ते सर्वविपुला के महाविपुला । जेम के 'मुख - विपुलाः ' पर्यन्ते च लघीयांसो भवन्ति नीचानाम् । वर्षासु ग्राम-पय:- प्रवाह - वेगा इव स्नेहाः ॥ ७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001454
Book TitleChhandonushasan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages204
LanguagePrakrit, Apabhramsha, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy