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________________ [17] कवलिअ-चिर-परूढ-माणंसिणि-माणिअं, फुल्ल-वल्लि-कुसु मंतर-गलिअ'-पराइअं ॥ ६० 'हे सखी, जेमां वनराजिमां भ्रमरगण गणगणे छे, जेमां विकसित वल्लरीओना पुष्पोमांथी पराग झरे छे, जेणे मानिनीओन लांबा समयथी दृढपणे पकडी राखेलुं मान हरी लीधुं छे एवी वसंतोत्सवनी विस्तरेली शोभा तुं जो ।' बीजा मते, ज्यारे पहेलुं अने चोथु चरण यमकबद्ध होय छे त्यारे ए छंद अंतरगलितक बने छ । आ प्रकारना अंतरगलितकनुं उदाहरण : पत्तलच्छि सुहयं जण-मोह-पयासयं, 'गलिअ'-निद्द-इंदीवर-पत्त-सहोअरं । सहइ तुज्झ एअं तं लोअण-जुअलयं, पत्तलच्छि सुहयंजण-मोह-पयासयं ॥ ६१ ___ 'हे अणियाळां नेत्रोवाळी, लोकोने मोहित करतुं, विकसित नीलकमलना दलसमुं आ तारुं सुंदर लोचनयुगल, सुंदर आंजणनी कांतिने प्रगट करतुं अने तेथी वधु रमणीय बनेलं, शोभी ऊठे छे ।' । विगलितक जेमां प्रत्येक चरणमां बे पंचकल, बे चतुष्कल अने एक पंचकल ए प्रमाणे मात्रागणो होय अने चरणो यमकबद्ध होय, ते छंदनु नाम विगलितक । विगलितकनुं उदाहरण : उअ महु-समओ मिउ-फुरिअ-मलय-पवमाणओ, 'विगलिअ'-चिर-परूढ-माणंसिणि-जण-माणओ। कोइलाहिं कय-कल-गीइहिं गिज्जमाणओ, __ वम्महस्स विजयम्मि सहाओ असमाणओ ॥ ६२ 'जेमां कोमळ मलयानिल फरकी रह्यो छे, जेनुं मधुर गीतथी कोयलो स्तुतिगान करी रही छे, जेमां मानिनीओए लांबा समयथी पकडी राखेलुं मान साव गळी गयुं छे, एवा आ वसंतसमयने- कामदेवना विजयना अनन्य सहायकने- तुंजो ।' संगलितक जेमां बे चतुष्कल अने एक पंचकल होय अने चरणो यमकबद्ध होय, ते छंदनुं नाम संगलितक । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001454
Book TitleChhandonushasan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages204
LanguagePrakrit, Apabhramsha, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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