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________________ [16] गलितक प्रकरण गलितक जेमां बे पंचमात्रिक, बे चतुर्मात्रिक अने एक त्रिमात्रिक गण होय, ते छंदनुं नाम गलितक । गलितकनां चरणो यमकबद्ध होय छे । ___ गलितकनुं उदाहरण : 'गलिअंजण-धवले वहइ नयण-पंकए, सुहय चयइ कालागुरु-चंदण-पंकए । सहीअण-अप्पिअं दलइ-च्चिअ नियं, सा तुह विरहे मालइ-दाम विणिद्दयं ॥ ५८ 'हे सुभग, तारा विरहमां तेनां नेत्रकमळ आंजण धोवाई गयुं होईने श्वेत बनी गयां छे, कृष्णागर अने चंदननो अंगलेप करवानुं तेणे तजी दीधुं छे अने सखीओने आपेली खीलेला मालतीपुष्पनी माळा ते निर्दयपणे तोडी नाखे छे ।' उपगलितक जो गलितकमां त्रीजो अने छठ्ठो वर्ण लघु होय अने चरणो यमकबद्ध होय, तो ते छंदतुं नाम उपगलितक । उपगलितकनुं उदाहरण : तुह विजय-पयाणय-भेरी-रव-डंबरं, झत्ति निसुणिउण पडिरव-मुहलिअंबरं । सज्झसेण पकंपिरस्स हरिणो करओ, 'उअ गलिअमिमं खु धणुहं धरए सरओ ॥ ५९ 'जो तो, तारा विजयप्रस्थाननी भेरीनो प्रचंड घोष-जेनो अंतरिक्षमाथी प्रतिघोष पडी रह्यो छे - ते एकाएक सांभळीने गभराटथी धूजता इंद्रना हाथमाथी सरी पडेलु धनुष्य जाणे के शरदऋतु धरी रही छे.' अंतरगलितक जो मात्र समचरणोपां यमक होय तो ते छंद- नाम अंतरगलितक छ । अंतरगलितकनुं उदाहरण : उअ वयंस वित्थरिअ-महूसव-लच्छिअं, रणरणंत-भसलावलि वणराइअं । Jain Education International • For Private &Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001454
Book TitleChhandonushasan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages204
LanguagePrakrit, Apabhramsha, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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