SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [18] संगलितकनुं उदाहरण : वण-फलमर'सं गलिअयं', जस्स य निव्वुइ-दाययं । तस्स सया वण-वासिणो, किं वण्णामि महेसिणो ॥ ६३ _ 'जे महर्षिओ सदा वनवासी छे अने जे नीचे पडेलां, नीरस वनफळथी संतुष्ट छे (तेमनी महत्तानुं) शुं वर्णन करुं ?' शुभगलितक जेमां एक षट्कल होय, चार विकल होय, एक गुरु होय अने चरणो यमकबद्ध होय ते छंद, नाम शुभगलितक । शुभगलितकनुं उदाहरण : पुणरवि निअ-रज्ज-सिरि-'सुह-गलिआ'सया, पव्वय-कंदरेसु निवसंतया सया । पहु तुह रिउणो धरंतया मुणि-व्वयं, पुणो पुणो वि हु उवालहंति दिव्वयं ॥ ६४ ___ 'हे महाराज, फरी पोतानी राज्यलक्ष्मीनुं सुख प्राप्त करवानी आशा ओसरी गई छे एवा तारा शत्रुओ सदाये मुनिव्रत धारण करीने पर्वतनी कंदराओमां निवास करता वारंवार पोताना भाग्यने उपालंभ दई रह्या छ ।' समगलितक जेमां प्रत्येक चरणमां एक चतुष्कल, बे पंचकल, बे चतुष्कल अने एक त्रिकल होय तथा चरणो यमकबद्ध होय, ते छंदनुं नाम समगलितक । समगलितकनुं उदाहरण : दुद्धर-वारि-वुट्टि-घोरा चल-विज्जुल-भीसणा, सेल-गुहंतराल-पडिसद्दिअ-दुगुणिअ-नीसणा । जाव समुत्थरंति मेहा पिहिअंबर-देसया, पहिआ ताव हुंति जंबू-फल-सम-गलिआ'सया ॥ ६५ 'ज्यारे दुःसह जळवृष्टिने लीधे घोर, चंचळ वीजळीने लीधे भीषण, जेनी गर्जनानो पर्वतोनी गुफानी अंदर पडघो पडतां ते बेवडाय छे, जेणे गगनप्रदेशने ढांकी दीधो छे एवा मेघो ऊमडे छे त्यारे प्रवासीओनी आशा (अथवा प्रवासीओ, हृदय) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001454
Book TitleChhandonushasan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages204
LanguagePrakrit, Apabhramsha, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy