SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२ भूमिका १. 'छंदोनुशासन'नो व्याप अने स्वरूप हेमचंद्राचार्ये जे भगीरथ ज्ञानयज्ञनुं (जो हिंसक अभिधेयार्थने बाद करीने कहीए तो 'अश्वमेध'नु) अनुष्ठान आदर्यु हतुं, तेमां तेमणे समग्रपणे भाषानो समावेश को हतो : 'वचस्'नो, एटले के व्यवहार अने शास्त्रनी भाषानो अने 'उक्ति'नो, एटले के काव्यभाषानो । काव्य, दर्शन अने शास्त्रना क्षेत्रोने आवरी लेतो ए शकवर्ती पुरुषार्थ हतो । शास्त्रमा व्याकरण, कोश, छंद अने अलंकारना विषयो तेमणे आवरी लीधा । 'छंदोनुशासन'मां संस्कृत अने प्राकृत छंदोर्नु निरूपण कर्यु छे । (१) संज्ञा, (२) समवृत्त, (३) अर्धसम-विषम-वैतालीयमात्रासमक आदि, (४) आर्या-गलितक-रखंजक-शीर्षक, (५) उत्साह आदि, (६) षट्पदी-चतुष्पदी, (७) द्विपदी, (८)प्रस्तार आदि-ए प्रमाणे आठ अध्यायो, ७४६ सूत्रो, तेमना परनी पोतानी 'छंदश्चूडामणि'वृत्ति अने स्वरचित १००० जेटलां संस्कृत-प्राकृत-अपभ्रंश उदाहरणो-एवा स्वरूपनो, त्रण हजारथी पण वधारे श्लोकप्रमाण धरावतो ए एक प्रमाणभूत, अनन्य पिंगळग्रंथ छे । ह. दा. वेलणकर वडे संपादित (सिंघी जैन ग्रंथमाला, ग्रंथांक ४९, १९६१) आवृत्तिमां (१) अगियार हस्तप्रतोने आधारे मूळ पाठ, वृत्ति अने पाठांतरो, (२) 'पर्याय'नामर्नु अज्ञातकर्तृक संस्कृत टिप्पणक, (३) 'जानाश्रय छंदोग्रंथमांथी प्राकृतवृत्त-विभाग, (४) विस्तृत भूमिका, (५) सूत्रो, छंदो, उदाहरणोनी विविध सूचिओ आपेल छ । अने मात्रागणोनां स्वरूप अने नामकरण, केटलाक प्राकृत अने अपभ्रंश छंदोनो इतिहास, प्राकृत-अपभ्रंश पिंगळकारोनां निरूपणोनी ऐतिहासिक दष्टिए तुलना वगेरे छंद-शास्त्रने लगता विषयोनी ऊंडाणथी चर्चा करी छ। 'छंदोनुशासन'ना प्राकृत-अपभ्रंश विभाग विशे तेमणे कयुं छे के हेमचंद्राचार्ये पोताना पुरोगामीएना कार्यनी बधी महत्त्वनी सामग्री उपयोगमा लईने ए छंदोमुं प्रमाणभूत, व्यवस्थित अने यथाघटित निरूपण कयुं छे. विरहांक अने स्वयंभूना ग्रंथथी तेओ परिचित छे अने संस्कृत, प्राकृत अने अपभ्रंश छंदोनुं तेमणे स्पष्टपणे विषयविभाजन कर्यु छे. 'स्वयंभूछंद' अने 'छंदोनुशासन' वच्चे केवो संबंध छे तेनी में नीचे सामान्य विचारणा करी छ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001454
Book TitleChhandonushasan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages204
LanguagePrakrit, Apabhramsha, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy