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________________ [9] तुह रिउराय-पुरेसुं तरुणी-जण-लालिअम्मि कंकेल्लि-वणे । संपइ अरण्ण-महिसाण 'खंध-कं डूअणं पयट्टेइ दढं ॥ ३४ 'तारा शत्रुराजाओना नगरोमां जे अशोक-वृक्षराजिनुं तरुणीओए लालनपालन कर्यु हतुं त्यां अत्यारे जंगली पाडाओ पोतानी कांधनी चळ जोरथी घसी रह्या उपस्कंधक स्कंधकना बन्ने अर्धमां छठ्ठा गणना स्थाने मात्र एक लघु होय तो जे छंद बने ते उपस्कंधक । उपस्कंधकनुं उदाहरण : __ 'उअ खंधा'हइ-तुटुंत-बाहु-दंडो वि को वि सुहडओ । एसो सहि पर-जोहं पहरड़ पाएण दट्ठाहरओ ॥ ३५ ___ 'हे सखी, जो तो, जेना खभा उपर प्रहार थवाथी बाहुदंड तूटी पड्यो छे तेवो आ कोईक सुभट शत्रुना योद्धाने होठ पर दांत भीसीने पगथी प्रहार करी रह्यो छ ।' उत्स्कंधक जो स्कंधकना पहेला अर्धना छठ्ठा गणना स्थाने लघु होय तो जे छंद बने ते उत्स्कंधक । उत्स्कंधकनुं उदाहरण : जा बल-मडप्फरेणं निवाण 'उक्खंधया' आसि पुरा । सा तुह सासण-भारं ताण वहंताण संपयं कह-वि गया ॥ ३६ __'पोताना बळना अभिमानथी जे राजाओ पहेला उन्नत स्कंधवाळा हता ते राजाओ हवे तारा शासननो भार वहेता होईने तेनी ए उन्नतता क्यांक चाली गई ।' अवस्कंधक जो स्कंधकना पाछळना अर्धमां छट्ठा गणना स्थाने एक लघु होय तो जे छंद बने ते अवस्कंधक । अवस्कंधक, उदाहरण : पवण-पहल्लिर-धयवडमुल्लसिअ-कोइला-बंदि-रवं । 'ओ खंधा'वारं चिअ पेच्छ वणं रइवइ-नरिंदस्स ॥ ३७ 'ज्यां पवनथी फरकतां पल्लवरूपी ध्वजपट छे, कोकिलारूपी बंदीजनोनो गीतरव ऊठे छे तेवू, अनंगराजना सैन्यना पडाव समुं, आ वन तुं जो ।' संकीर्ण स्कंधक जो पूर्वार्घमां स्कंधक होय अने उत्तरार्धमां गीति होय, अथवा तो पूर्वार्धमां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001454
Book TitleChhandonushasan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages204
LanguagePrakrit, Apabhramsha, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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