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________________ [67] वल्लह - पयहं पडंति भांति अ वयण-सय ॥ ३६ 'हे घेली, तुंमाननो त्याग न कर, एक क्षण शांत रहे, चंद्रने ऊगवा दे । रासमंडळनो उत्सव शरू थवा दे । त्यारे हे सखी, हुं मारी आज आंखो वडे तने कामातुर थईने सेंकडो वचनो बोलता तारा प्रियतमना पगे पडती हुं जोईश ।' नोंध :- केटलाकने मते आ छंदनुं नाम चतुष्पदी अथवा वस्तुक एवं छे । वस्तुवदनक अने रासावलयनुं मिश्रण जेमां अर्धो भाग (ओटले के बे पंक्ति) वस्तुवदनकछंदनो होय अने अर्धो भाग (ओटले के बे पंक्ति) रासवलयछंदनो होय त्यारे जे मिश्र छंद बने, तेमां ए बे छंदमांथी गमे तेनो पूर्वार्ध होय अथवा उत्तरार्ध होय । जेमां वस्तुवदनकनो पूर्वार्ध छे अने रासावलयनो उत्तरार्ध छे तेवा मिश्र छंदनुं उदाहरण : अविहड-अवरुप्पर-परूढ-गुण- गंठि-निबद्धउ, अइआरिण हलि गलइ पेम्मु सरलिम -सय-लद्धउ । माण- मडप्फरु तुह न जुत्तु उत्तिम - रमणि, तिभणि वारउं वारवार वारण- गमणि ॥ ३७ 'हे सखी, जे दृढ अने न छूटी शके एवी गुणोनी गांठथी परस्पर साथे बंधायेलो छे, अने जे सेंकडो सरळताथी प्राप्त थयेल छे तेवो प्रेम अतिचार करवाथी गळी जतो होय छे । तो हे उत्तम सुंदरी, मान अने दर्प करवां तने घटतां नथी । ए कारणे ज हे गजगामिनी, हुं तने वारंवर वारुं छं ।' रासावलय अने वस्तुवदनकना मिश्रणनुं उदाहरण : सवण- निहिअ - हीरय- हसंत- कुंडल-जुअल, थूलामल-मुत्तावलि - मंडिअ - थण-कमल । सेअंसुअ- पंगुरण- बहल - सिरिहंड - रसुज्जल, Jain Education International बहु-पहुल - विअइल - फुल्ल-फुल्लाविअ - कुंतल ॥ ३८ ‘तेणे कानमां हीरानां झळहळतां कुंडळनी जोड पहेरेली छे, तेना स्तनकमळ मोटां, निर्मल मोतीओनी माळाथी भूषित छे, तेणे चंदनना रसथी भीनी अने मघमघ रेशमी साडी पहेरी छे, तेना वांकडिया केश अतिशय श्वेत, विचकिल पुष्पोथी शणगारेल छे ।' For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001454
Book TitleChhandonushasan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages204
LanguagePrakrit, Apabhramsha, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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