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________________ निबद्ध होय तेवा खंडो के सुभाषितादि आपणने जोवा मळे छ । २. स्वछं. अने छंशा. ना प्राकृत विभागना छंदोनी वात करीए तो, उपलब्ध संधिबद्ध अपभ्रंश महाकाव्यो जोतां आपणे कही शकीए के केटलाक प्राकृत छंदो नियत हेतु माटे संधिबंधमां लाक्षणिक रीते वपराता हता । उदाहरण तरीके स्वयंभूना 'पउमचरिय' मां निध्यायिका, मंजरी, हेला, शालभंजिका, कामलेखा, द्विपदी, आरनाल, मात्रा अने मंजरीनी द्विभंगी-एटला छंद कडवकोनी आधिध्रवा तरीके केटलाक संधिमां वपराया छे ।६ पुष्पदंतनं 'महापुराण' अने एवा बीजा संधिबद्ध पौराणिक काव्योने आधारे आ यादी लंबावी शकाशे । हवे आ छंदोनुं निरूपण छंशा. ना चोथा अध्यायमां तथा स्वछं. ना त्रीजा प्रकरणमां एटले के तेमना प्राकृत विभागमा थयेलुं छे ।' आ उपरांत संधिबंधमां अमुक संधिना कडवको विविध छंदोमां रचवानी प्रथाने अनुसरीने कविओ तेवे स्थाने द्विपदी वगेरे जेवा प्राकृत छंदो तथा मुख्यत्वे संस्कृत काव्योमां वपरातां मात्रावृत्तो अने अक्षरवृत्तोनो प्रयोग पण करता होवानां घणां उदाहरण आपणी सामे छे । ३. स्वछं. अने छंदो. ना प्राकृत विभागमां गाथाप्रकरण अने स्कंधकप्रकरण उपरांत गलितक, खंजक अने शीर्षक नामनां छंदप्रकारोने अलग प्रकरण के पेटाविभागमां मूकेला छे । आमांना शीर्षकविभागमा विविध छंदोनां मिश्रणो के संयोजनोनुं निरूपण छे । द्विपदी के चतुष्पदी प्रकारना कोई जुदा जुदा बे के वधु छंदना, तेमना स्वरूप अनुसार बे के चार चरणना एकमोने जोडीने एक पछी एक एम मूकीने बे के वधु घटकोनी एकात्मक रचनाओ--एकवाक्यता धरावती रचनाओ, सामान्य नाम शीर्षक हतुं । बे छंदोर्नु संयोजन द्विभंगी कहेवातुं, त्रण छंदोर्नु संयोजन त्रिभंगी। उपर नोंध्युं छे तेम अपभ्रंशमां प्रचलित मात्रा तथा प्राकृत मंजरी छंदनी द्विभंगी स्वंयभूए 'पउमचरिय' मां एक संधिमां आदिध्रुवा तरीके वापरी छे, अने मात्रा तथा दोहानी रड्डा नामे जाणीती द्विभंगी स्वतंत्रपणे महाकाव्यो के चरितकाव्यो माटे वपरावा उपरांत आदिध्रुवा तरीके वपराती होवानुं स्वयंभूए नोंध्युं छे । छंशा. मां अन्य प्रकारनी पण विविध द्विभंगीओ, निरूपण मळे छे । ४. छेवटे प्राकृत छंदोना जे एकबे महत्त्वनां पासां अत्यार सुधी घणुखरुं उपेक्षित रह्या छे तेमनो हुं स्पर्श करीश । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001454
Book TitleChhandonushasan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages204
LanguagePrakrit, Apabhramsha, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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