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________________ [ 24 ] चरणो यमकबद्ध होय, तो ते छंदनुं नाम विच्छित्तिगलितक । विच्छित्तिगलितकनुं उदाहरण : रणरणंति जत्थ पमत्ता कुसुमेसु सिलीमुहा, होंति जत्थ लोअ - दूसहा कुसुमेसु - सिलीमुहा । 'विच्छित्ति' - परो तरुणिअणो विणा - वि हु महु समओ, विब्भमइ जत्थ समुत्थरइ एस इह महु- समओ ॥ ७७ 'आ वसंतऋतु अहीं विस्तरी रही छे, जेमां मदमत्त भ्रमरो पुष्पोनी उपर गणगणे छे, जेमां लोकोने माटे कामदेवना बाणो असह्य बन्यां छे, जेमां तरुणीओ पत्रलेखा वडे पोताने शणगारीने मद्यपान कर्या विना पण मदमत्त थइने भ्रमण करे छे ।' ललितागलितक जेमां प्रत्येक चरणमां बे चतुष्कल, एक पंचकल, एक चतुष्कल, एक पंचकल अने एक द्विकल होय तथा चरणो यमकबद्ध होय, ते छंदनुं नाम ललितागलितक । ललितागलितकनुं उदाहरण : मत्त-मयर- पुच्छ-च्छडोह - भग्ग - वणराइअं । तीर-सहंत लवंग-लवलि-कणइ-वण- राइअं । नह - मंडल - गरुअ - निरंतर विविह-घण-वालयं, अहिं पेच्छ 'ललिअ ' - गत्ति एअं घण-वालयं ॥ ७८ 'हे ललित गतिवाळी, आ समुद्रने जो, जे मदमत्त मगरोनी पुच्छनी झपटथी वनराजने तोडी पाडे छे जेने कांठे लविंग अने लवली लताओनी श्रेणी शोभे छे, जे आकाशमां निरंतर विचरता विविध प्रकारना मोटा मेघोनो पालक छे अने जेमां पुष्कळ जळचर सर्पो छे ।' विषमगलितक जेमां विच्छित्ति अने ललितागलितकनुं अथवा ललिता अने विच्छित्तिनुं मिश्रण होय तथा चरणो यमकबद्ध होय, ते छंदनुं नाम विषमगलितक । विषमगलितकनुं उदाहरण : तरलं दीहत्तणेणं पाविअ - कण्ण-मग्गं, Jain Education International 'विसम 'त्थ-मोह- सायरे करेइ कं ण मग्गं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001454
Book TitleChhandonushasan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages204
LanguagePrakrit, Apabhramsha, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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