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योग और साधना
की साधना में तरह-तरह के अबरोध खड़े करता है, उनकी साधना में विघ्न उपस्थित होते हैं जिनके कारण उन्हें अपनी साधना अधूरी हो छोड़ देनी पड़ती है।
साधक को यह बात हमेशा ध्यान में रख लेनी चाहिये कि यह अध्यात्म का मार्ग अथवा ब्रह्म को जानने का मार्ग केवल उन लोगों के लिए है जो अपने जीवन से अपनी तमाम झूठों को तिरोहित करने के लिए राजी हो गये है । अथवा जो अपनी झूठी जिन्दगी की मत्यु को स्वीकार करने को राजी हो गये है। सत्य बोलना मृत्यु को स्वीकार कर लिए जाने के ही समान है । इसीलिए ही यह हमारी साधना में की जाने वाली तापश्चर्या का प्रथम तथा महत्वपूर्ण अंग है।
सच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप । जाके हृदय साँच है, ताके हृदय आप ॥
इन दो लाइनों में ही कवि ने अपने मन की पूरी बात कह दी है। इस दुनिया में सत्य बोलने के बराबर अन्य कोई तप नहीं है। क्योंकि सत्य के द्वारा ही हमारा मन हमेशा शांत और निर्मल बना रहता है। जबकि झूठ इतना बड़ा पाप है जो हमें इस अपनी आत्मिक साधना से दूर और दूर ले जाता है। इस बात को अपने विवेक से जानकर जो साधक सत्य को अपने मन मन्दिर में स्थापित कर लेता है उसी आत्मवान पुरुष में परमात्मा भी आकर ब्रह्म स्वरुप विराजमान हो ही जाता है।
यह माना कि आदमी की गलती करना उसकी एक मात्र कमजोरी है लेकिन यह भी कहां की समझदारी है कि हम अपनी को हुई एक गलती को अमरबेल की तरह बढ़ने में उसे सहयोग देते हो जायें। और अपनी उस एक मात्र शुरू की गलती को अपने ऊपर छा जाने दे । जिसका फल हम इस जन्म में तो भोगे ही उसी के द्वारा अपने आगे आने वाले जन्मों को भी बिगाड़ लें। इससे बचने का एक मात्र उपाय यदि कोई इस दुनिया में है तो वह यह है कि, हम इस झूठ रूपी दैत्य को उसकी शैशव अवस्था में ही सत्य द्वारा स्वीकार करके मार गिरायें। कुछ लोग यहां यह गंका करने लगते है कि यदि हमसे एक गलती हो गई है और
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