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साधन से सिद्धियों की प्राप्ति
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स्वामी जी ने इसके जबाव में कहा कि “पागल हुये हो, खुले आकाश में वहाँ जाकर बैठोगे, वहाँ तो इतनी ठण्ड है कि एक रात में ही बर्फ में जम जाओगे।"
इतना कहकर वे वहाँ से वापिस चलने को अपनी जीप में बैठ गये, उन्होंने मुझसे मेरा व्यवसाय और रहने का स्थान पूछा और चल दिये । मैं कुछ सैकिण्ड के लिये ठिठका सा खड़ा रह गया, थोड़ी देर आगे जाकर स्वामी जी ने अपनी जीप
रोक ली, तब मैंने अनुभव किया कि वे अपनी जीप के पीछे देखने वाले शीशे से मुझे देख भी रहे थे लेकिन फिर दुबारा से मेरे पैर आगे नहीं बढ़ सके थे क्योंकि जितना मैंने उनसे कह दिया था उससे ज्यादा मेरे पास कहने को अब कुछ भी नहीं था। स्वामी जी के वहाँ से चले जाने के पश्चात् मैं भी बापिस बबुआ के पास लौट आया। मेरे मन में उस समय एक ही भाव था कि परमात्मा ने शायद मेरे हक में यही ठीक समझा है । चूकि मेरे ही मन में मन्तालाई के लिये स्वामी जी से मिलने का आग्रह था शायद इसीलिये ही उन्हें केवल कुछ मिनटों के लिये इस आश्रम में भेज कर मेरे मन में बनी घुण्डी को सुलझाने से मेरी इस तरह से सहायता को है ।
उसी दिन शाम को हम ऋषीकेश पहुँच गये, गीता भवन में तो हमें जगह मिली नहीं क्योंकि यहाँ तो पहले से ही आरक्षण कराना पड़ता है तथा वहाँ के नित्य के नियमों एवं कार्यक्रमों के कारण मुझे वहाँ ठीक भी नहीं रहता। इसलिये वहाँ से चलकर हम भारत साधु समाज पर आये । जहाँ हमें बिना किसी परेशानी के हमारे अनुकूल जगह मिल गयी, वहाँ के कमरे बड़े ही साफ एवं रंग रोगन से एकदम ताजा पुते हुये थे, सामान रखकर हम थोड़ा विश्राम करने के लिये बैठ गये। तभी थोड़ी देर बाद क्या देखते हैं कि दिन भर की गर्मी के बाद वहाँ पर तेज हवायें चलने लगीं ओर आधै घण्ठे बाद ही वहाँ पर तेज वर्षा भी होने लगी, इस मौसम को देखकर मेरा आकाश के नीचे साधना करने का विचार तो अपने आप ही तिरो'हित हो गया। लेकिन उन कमरों की साज सज्जा देखकर मेरे मन में शंका हो रही थी कि ये लोग हवन की धुआँ से शायद अपने कमरों को काला होने देने पर ऐतराज उठायेंगे । इसलिये मैं रात्री को अपने मन की शंका के लिये वहाँ के व्यवस्थापकगण जिन्होंने गेरुआ वस्त्र पहन रखे थे उनके पास गया । मैंने अपने ठहरने का प्रयोजन उनको बताया तथा अपनी साधना करने की पद्धति पर प्रकाश डाला तो उन्होंने यह कहते हुये अपनी स्वीकृति दे दी कि जब आप भगवत् भजन करने के
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