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योग और साधना
या प्रत्येक धड़कन के साथ दिल की बजाय हम स्वयं ही धड़क रहे हैं। जिस समय विशुद्ध पर यह शक्ति आती है कब हमें ऐसा लगता है कि हमने जो स्वांस नाक बुरा बन्द कर रखी है, उसकी हमारे फेफड़े हमारी छाती की त्वचा के दा ले रहे हैं । आज्ञा चक्र पर जब यह शक्ति आती है तब हमें अपनी बन्द आंखों के कदर तेज प्रकाश के कण चलते हुए आतिशबाजी की तरह दिखाई देने लगते हैं । जिस समय हम सहस्त्रार पर उसे महसूस करते हैं उस समय लगता है हमारे सम्पूर्ण प्रामा हमारी खोपड़ी पर आकर टक्कर मार रहे हैं। ये हमारी खोपड़ी को तोड़ ही देंगे। हमारी खोपड़ी का ऊपर का हिस्सा एक तरह से सुन्न हो जाता है। हमारे मस्तिष्क के कोषों पर बड़ा भारी तनाव उसी समय पड़ता है और यही समय हमारे प्राणायाम को पूर्णता को प्राप्त होने का है ।
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इस प्रकार के अनुभव हमें दो मिनट से लेकर तीन साढ़े तीन मिनट तक स्वाँस रोके रखने के पश्चात ही होते हैं। अगर हम किन्हीं कारणों वश अपने आपको नहीं संभाल पाते हैं अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति के वाबजूद तो हमें ग्रही समझता चाहिये कि कहीं न कहीं हमारे स्थूल शरीर में खराबी है जो कि इस समय बाधा बन रही है । इसलिए पहले हमें प्रत्येक शारीरिक बाधा पर विशेष ध्यान रखना होगा । जिन दिनों में स्वयं इस कठिनतम प्राणायाम के अभ्यास पर था, मुझे खून याद है सुबह तीन-तीन बार शोच जाता था फिर भी लगता था कि अभी पेट में भारीपन है या थोड़ी बहुत अपान वायु पेट में मौजूद है। जरा सा भी मूत्र ब्लैडर में रह जाता तो वह भी भारीपन महसूस करा देता था जिसकी वजह से बीच में ही आसन छोड़कर उठना पड़ता था जो कि बड़ी भारी परेशानी का कारण अपने मन में लगता था ।
प्राणायाम करते समय दो परेशानी इतनी जबरदस्त तीखी झुंझलाहट पैदा करने वाली अथवा गुस्सा दिलाने वाली होती हैं उनमें एक तो है शारीरिक धा तथा दूसरी साधना स्थल के आस-पास किसी प्रकार का शोर, क्योंकि उस समय आप तो अपने प्राणों से खेल रहे होते हैं मोर बड़ी मुश्किल से ऐसी हिम्मत अपने अन्दर जगा पाते हैं यदि इस अवस्था में हमारे समक्ष कोई अवरोध आता तो बुरा लगेगा ही, बहुत से लोग तो इस शोर की वजह से कानों में रूई लगाकर बैठते हैं ।
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