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समप्रज्ञात के चार भेदों के बाद असमप्रज्ञात की झलक
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हैं यह ठीक है कि उसका शरीर अब अधिक देर तक प्राणों को झेलने की क्षमता नहीं रखता है लेकिन वह जीवित रहता है । अपने इकलौते बेटे की सूरत उसकी आँखों के सामने आती है और वह शरीर त्याग देता है । जिसे उसने अपनी इच्छा शक्ति के द्वारा अपने प्राणों को शरीर से बाहर निकलने से इच्छानुसार रोके
रखा था ।
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२.१.५.
तो ध्यान रखना, इस शरीर में प्राण भी अलग से रहते हैं। ठीक उसी प्रकार - जैसे बुद्धि तथा मन रहते हैं। प्राणों का अलग से परिचय होने के पश्चात हो हम जान जाते हैं कि निश्चित रूप से हमारे प्राण जब यहां इस शरीर से बाहर निकल सकते हैं तब दूसरी अनुकूल स्थिति पैदा होते ही किसी दूसरे अन्य शरीर के अन्दर समा भी सकते हैं । इसके साथ ही हमारी बुद्धि की यह शंका भी निर्मूल हो जाती है कि हमारा पुर्नजन्म नहीं होता । इसी प्रकार से हमारे जन्म मरण के बारे में जितने भी तर्क कुतर्क इस वैज्ञानिक युग में हमारे मन में उठते हैं उनको हम अपनी चेतना के स्तर पर अनुभव करके उनका हल, अपने अन्दर ही प्राप्त कर लेते हैं जिसकी वजह से तर्क से हटकर कुतर्क में नहीं फँसते बल्कि हम वितर्क की स्थिति में आ जाते हैं। तर्क के कुतर्क में फँसने का मतलब है एक प्रश्न तो गिरा लेकिन दूसरा खड़ा हो गया दूसरे के गिरने के बाद तीसरा आकर खड़ा हो गया लेकिन वितर्क का मतलब होता है समाधान ।
उसको जरा और गहरे से समझें जैसे कोई एक कहे कि गुलाब में बड़ी भीनी, बड़ी मोहक सुगन्ध होती है जबकि दूसरा कहे कि गुलाब में बड़े नुकीले काँटे होते हैं । अब दोनों आपस में तर्क कुतर्क करेंगे, इनमें एक आशावादी है जो फूलों की सुगन्ध की कह रहा है, दूसरा निराशावादी है जो काँटे ही देख रहा है, दोनों अपने-अपने पक्षों को दर्शाने के लिए तर्क पेश करेंगे । अन्तर दोनों में कुछ भी नहीं है, दोनों सिक्के के ऊपर नीचे के पहलुओं पर लड़ रहे हैं, ये दोनों असली गुलाब को कभी नहीं समझेंगे | जब ये दोनों तर्क से परे हो जायेंगे यानि वितर्क की स्थिति में आयेंगे (वितर्क बिना तर्क ) तब ही ये काँटों एवं सुगन्ध को भी गुलाब का ही रूप मानेंगे | जब इनको ये दोनों स्थितियां गुलाब की मुलायम-मुलायम पंखुड़ियों पर पहुँच
ही वे असली
मान्य हो जावेंगी तब सकेंगे । यही तरीका होगा विधायक के रूप में सोचने का और यही स्थिति है वितर्क की । समाधि अवस्था पहली
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