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योग और साधना
के लिये क्योंकि उसके प्राणों पर तो बिना पानी के संकट ही खड़ा हो गया है इसलिये वह मछली अब किनारे पर उछल कूद करके अपने प्राण-पण से समुद्र में पहुँचने के लिये कोशिश करती है। जब वह स्वयं की कोशिशों से फिर दोबारा समुद्र के पानी में अपनी संगी साथी माँ-बाप, भाई-बहन, मित्रों के बीच पहुँचती है तब वह कितनी आनन्दित होती है, उसके आनन्द की कोई सीमा नहीं होती। उसे उसी दिन पता चलता है कि इस सागर के पानी में कितना आनन्द है ! किनारे पर जाने से पहले उसका समुद्र में जन्म हुआ था, वहीं वह बड़ी हुई थी लेकिन उसे समुद्र का पता नहीं चलता था लेकिन किनारे की छटपटाहट देखने के पश्चात पहली बार उसे अपने चारों तरफ ऊपर-नीचे समुद्र ही समुद्र दिखाई देने लगता है। अब जो भी बात वह करती है उसकी बातें उसी समुद्र से शुरू होती हैं अपने साथियों के बीच और किनारे पर से होकर लौटती हुई फिर समुद्र पर ही आकर रुकती हैं ।
उसके चेहरे पर अब एक अलग ही आभा आ गई होती है किनारे के अनुभव से गुजर जाने के बाद, अब वह सभी से कहती फिरती है कि यह समुद्र कितना प्यारा है । इसमें कितना आनन्द है, दूसरी मछलियों को तो इसमें आनन्द नहीं आता और आयेगा भी कहाँ से अभी तो उन्हें समुद्र का ही पता नहीं चलता। दूसरी मछलियों के प्रश्नों के जवाब में अब वह कहती है । ठीक है अभी तुम्हें समुद्र का पता नहीं चलता । तुम जरा किनारे पर हो आओ, अपने आप इसका पता चल जावेगा । मैं तुम्हें कितना ही समझाऊँ ? तुम मेरी बातों से रत्ती भर भी समझ न सकोगी, वह रास्ता बताने को भी तैयार हो जाती है, वह नाना प्रकार से उन्हें उत्साहित करती है कि जाओ अगर तुम्हें सागर का आनन्द लेना है तो पहले किनारे पर जाओ, इसके विना कोई और रास्ता नहीं है, उस सागर को जानने का जो कि तुम्हारे हर तरफ हर समय मौजूद है।
तो ध्यान रखना, यहाँ तीन प्रकार की मछलियाँ हैं। एक तो वे जो अभी समुद्र में ही हैं अभी उन्होंने किनारा नहीं देखा है । दूसरे प्रकार की वे हैं जो किनारा देखकर वापिस लौट आयी हैं फिर से समुद्र में और तीसरी प्रकार की वे मछलियाँ हैं जो अभी किनारे पर हैं, दुखः उठा रही हैं, प्राणों के स्तर पर और समुद्र में पहुँचने के लिये कोशिश में लगी हैं।
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