Book Title: Yog aur Sadhana
Author(s): Shyamdev Khandelval
Publisher: Bharti Pustak Mandir

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Page 238
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३४ योग और साधना ऐसे भी हैं जो बार-बार न जाने कितने ही जन्मों से लगातार मानव देह प्राप्त किये जा रहे हैं । उनके ताजा अनुभव आदमियों के से होंगे अथवा वह आम आदमियों से ज्यादा कुशाग्र बुद्धि वाला हमको लगेगा बहुत से इसके विपरीत भी हो सकते हैं इसमें कोई संशय नहीं है। किन्ही पति-पत्नी में ऐसा अगाध प्रेम होता है कि एक की मृत्यु के पश्चात् दूसरा भी ज्यादा दिन नहीं जी पाता वह आदत या अगाध प्रेम उन्हें विरासत में कहाँ से मिला होगा ? शायद वहाँ से जब वे पिछले जन्मों की योनि में जिसमें वे सारस बने होंगे । मोर की वह मोहक अदा, जिसके द्वारा नाच-नाच कर वह मोरनी को रिझाता है। आजकल बहुत से लड़के लड़कियों को रिझाने के लिये एक्टर बने फिरते हैं। कुत्ते जैसी स्वामिभक्तिता, वफादारी, कबूतर की गुफ्तगू', बन्दर जैसा नटखट पन, रीछ जैसी कानुकता, साँप जैसा वशीकरण, गिरगिट जैसा रंग बदलना, बिल्ली जैसा खाना और गुर्राना, कौवे जैसी खामहखाह की काँव-काँव, गधा जैसा लद्रूपन, कोयल जैसी कुहुकता, गैडा जैसा मस्तानापन, चीते जैसी फुर्ती, बाज जैसा शिकारीपन, लोमड़ी जैसी चालाकी, पहाड़ जैसी चट्टानता-दृढ़ता, सियार जैसा डरपोकपन, खरगोश जैसी मुलायमी, हिरण जैसा भोलापन भादि-आदि । हमें अनन्य मानवों के चित्त में देखने को मिलता है ।। ___ इनसब उदाहरणों से ऐसा लगता है कि या तो ये तमाम जानवर अपने पिछले जन्मों में आदमी रहे हैं या ये तमाम जानवर अपने तमाम गुणों के साथ इस मानव देह में हैं । इन दोनों में दूसरी बात ज्यादा वजनदार दिखाई देती है, क्योंकि इन जानवरों की जो जो खासियतें इनके स्वभाव में पायी जाती हैं मानव की सन्तानों में देखने को मिलती हैं। जबकि मानव की खासियत, उसका जैसा चैतन्य मस्तिष्क अन्य किसी जानवर में दिखाई नहीं देता। आज यदि हम तैरना सीख जाते हैं तो यह तो आप भी जानते ही हैं कि हम भले ही फिर 20 साल तक एक दिन के लिए भी नहीं तेरें लेकिन हम 20 साल तो क्या जिन्दगी भर में फिर कभी तैग्ना नहीं भूल पाते । इन सब बातों को लिखकर मैं केवल यह बताना चाहता हूँ कि हमारे अपने प्रथम जन्म के समय हमारे पास एक ही संस्कार था इस पृथ्वी पर जन्म लेने का वह संस्कार अपने अन्दर कोई स्वरूप नहीं लिये था और न कोई विशेष चैतन्यता की आकांक्षा ही उसके अन्दर थी । इसी वजह से वह जड़ स्वरूप इस पृथ्वी पर आया होगा । बाद में जैसी-जैसी For Private And Personal Use Only

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