Book Title: Yog aur Sadhana
Author(s): Shyamdev Khandelval
Publisher: Bharti Pustak Mandir

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Page 233
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साकार हमारा चिन्तन-निराकार हमारा मार्ग २२६ ५. जब वह हमारे प्रत्येक काम पर दृष्टि रखे हुये हैं जिन कर्मों के द्वारा हम विचलित हो जाते हैं तो क्या वह इस तमाम संसार के कर्मों को अपनी दृष्टि में रखकर संयम से रह पाता होगा? यदि नहीं तो फिर वह कैसा सतचित्त आनन्द है ? ६. जब उसके आदेशानुसार या उसके बनाये प्रारब्ध के अनुसार ही हमारे कर्म बंधे हुये हैं तो फिर दोषी हम क्यों ? ७. इसी मत के अनुसार उस परमात्मा ने किसी को ब्राह्मण का कार्य सोंपा है किसी को शूद्र का तो क्या वह वहीं से बैठा-बैठा जातियां या वर्ग भेद पैदा कर रहा है ? तो फिर उसने शरीर के रंगों में अन्तर क्यों नहीं कर दिया ? और भी न जाने कितने-कितने प्रश्न है जिनका जवाव या तो है नहीं या फिर वे सिर पर का हैं जिसकी वजह से आज के वैज्ञानिक युग में हमारे इस धार्मिक मत की और भी ज्यादा छीछालेदर हो रही है। आज के मानव को आज की परिस्थितियों के अनुसार और आज की ही भाषा में जवाब चाहिये लेकिन इस उपरोक्त मत नालों ने आज तक इस विषय पर नहीं सोचा । इसके अलावा जो दूसरे प्रकार के मत वाले हैं उसमें तस्वीर करीब-करीब बिल्कुल साफ है। वैसे सत्य क्या है ? परमात्मा ही जानता है लेकिन इनका वक्तव्य सत्य के ज्यादा नजदीक लगता है मुझे । इनके बक्तव्य को समझने से पहले मैं चाहूँगा एक छोटी सी घटना को आपके मानस पटल पर रखना जिसकी वजह से इस सारी व्यवस्था को समझना जरा आसान होगा। कई बार आपने देखा होगा, समुद्र के किनारे पानी की लहरों के साथ मछली भी आ जाती है। पानी तो लौट जाता है लेकिन मछली किनारे पर ही रह जाती है, तड़फड़ाती है, वहीं किनारे पर उछलती हैं, छटपटाती हैं पानी में पहुंचने For Private And Personal Use Only

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