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साकार हमारा चिन्तन-निराकार हमारा मार्ग
इस घटना के चित्रण के बाद मैं दूसरे प्रकार के मत पर आता हूँ । जिसके मतानुसार परमात्मा को कोई साकार रूप नहीं दिया गया है । बल्कि उसको तो निराकार कहा गया है। लेकिन बिना किसी स्वरूप के उसे कैसे जाने ? इसके उत्तर में उसकी पहचान करने के लिए वे कहते हैं परमात्मा ऐसा नहीं है कि वह विशेष शक्ति या विशेष स्थिति वाली कोई विशेष आत्मा हो बल्कि जिसे हम परमात्मा कहते हैं वह तो परम आत्माओं का समूह है ऐसा समूह जिसमें असंख्य आत्मायें मौजूद हैं । यहाँ असंख्य का अर्थ भी समझ लें । असंख्य का अर्थ होता है असंख्य में से यदि असंख्य भी निकाल दें तो भी असंख्य ही बचता है यानि वह हमारी समझ और हमारे गणित के पार असीमित है।
___इस ब्रह्माण्ड में ठीक समुद्र की ही तरह से तीन प्रकार की आत्मायें हैं । जो आत्मायें अभी उन असीमित आत्माओं के समूह से बाहर आकर इस संसार में नहीं जन्मी हैं। उन्हें हम "निगोद आत्माओं' के नाम से जानते है । दूसरे प्रकार की वे आत्मायें हैं जो इस संसार को देखकर, जानकर अथवा संसार के अनुभवों से गुजर कर फिर वापिस उसी समूह में पहुँच गयी हैं। उस परम् सत्ता का आनन्द उठाने के लिये इस प्रकार दूसरे प्रकार की आत्माओं को हम मुक्त आत्माओं के नाम से जानते हैं । तीसरे प्रकार की आत्मायें वे आत्मायें हैं जो अभी इस संसार में है, विभिन्न रूपों में, विभिन्न स्थितियों में इस संसार रूपी किनारे का अनुभव कर रही हैं इस तीसरे प्रकार की आत्माओं को हम सासांरिक आत्मायें कहते हैं।
अब जरा इस व्यवस्था के अन्तर्गत अपने प्रश्नों को गौर करें :---
हम क्यों निकले ? उस परम् सत्ता से बाहर। हमारे प्रथम जन्म के समय हमारा संस्कार कहाँ से हमें मिला और हमने क्या भोगा ? किसने हमें यहाँ भेजा और फिर कौन हमें फिर वहीं उसमें विलीन होने को बुला रहा है ।
हम स्वयं आये हैं इस संसार में हमें किसी ने नहीं भेजा बस जरा सा उत्साह हमें मुक्त आत्माओं ने हमारे भले के लिये दिलाया है, और संस्कारों ने नाम पर भी हमारे पास इस संसार में जन्म लेने की उत्कंठा रूपी इच्छा शक्ति ही थी। प्रथम जन्म हमारा बिल्कुल जड़ स्वरूप ही था जैसे पहाड़ । हजारों हजार साल तक न
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