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अध्याय १५
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साकार हमारा चिन्तन- निराकार हमारा मार्ग
इस जन्म और मृत्यु से छुटकारा पाना या मुक्त हो जाना ही असली मुक्ति नहीं है मुक्ति तो तब ही होगी जब तक आत्मा अपने अंशी में जाकर विलीन नहीं हो जाती है केवल तब ही इस संसार से किसी आत्मा का मुक्त हुआ जानना चाहिए | जिस प्रकार इस देह की मृत्यु के बाद देह के पाँचों तत्व प्रकृति में अपने अपने स्थान पर पहुँचकर विलीन हो जाते है और जीव प्रकृति की सीमाओं से मुक्त हो जाता है ठीक इसी प्रकार आत्मा जब तक अपने अंशी जिसमें से वह निकलकर शुरू में आयी थी उसी में जाकर विलीन नहीं हो जाती है तब तक आत्मा की युक्ति सम्भव नहीं है। उसके अकेलेपन की ऊब उसमें अपने अंशी में मिलने के लिए ललक जगाती रहेंगी और किसी न किसी तरह देर सबेर वह मिल ही जावेगी यह एक शाश्वत सत्य है । जिस प्रकार सागर से भाप बनकर निकली हुई बूंद येन केन प्रकारेण सागर में ही मिल जाती है, ठीक इसी प्रकार उस परमात्मा में से निकली हुई कोई भी आत्मा जब तक उसमें ही जाकर 'विलीन नहीं हो जाती तब तक उसकी यात्रा समाप्त नहीं हो जाती ।
आप कह सकते हैं जब कोई आत्मा उस उच्च स्वरूप को प्राप्त हो जाती है जिसके बाद वह इस संसार में तो उतरती नहीं है फिर वह अपने आगे की यात्रा
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