Book Title: Yog aur Sadhana
Author(s): Shyamdev Khandelval
Publisher: Bharti Pustak Mandir

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Page 223
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समप्रज्ञात के चार भेदों के बाद असमप्रज्ञात की झलक बिना मृत्यु को प्राप्त हुए यदि मृत्यु के बाद की अवस्था का अनुभव हम एक बार प्राप्त कर लेते हैं तो बाद में उस असाधारण अवस्था में टिके रहने का अभ्यास करना हमारे लिए सहज हो जाता है । जिस प्रकार मरने के तुरन्त बाद से ही हमारी आसक्ति हमें इस संसार की तरफ उनकी पूर्ति के लिए खींचती है। ठीक इसी प्रकार असमप्रज्ञात समाधि को अवस्था में शरीर से बाहर निकलते ही हमारी चेतना शरीर में वापिस लौटने को बेताब हो जाती है लेकिन यदि साधक अपने मन या चित्त पर संयम साधने में सफल हो जाता है तो वह ज्यादा देर तक अपना समय इस शरीर के बाहर गुजार सकता है जिसका एक ही फायदा भविष्य में होता है कि वह मृत्यु के बाद अपने मन चाहे गर्भ में उतरने की योग्यता प्राप्त कर लेता है क्योंकि अपने सभी कर्मों को वह वहीं सूक्ष्म रूप में साक्षात् करके अपनी चेतना को निर्मल बना लेता है जो कुछ थोड़े बहुत ऐसे कर्म बचते हैं जिनका सम्बन्ध हमारे साथ की दूसरी चेतनाओं से सम्बन्धित होता है वह केवल उनके हो कारण जन्म लेता है । अन्यथा अपने से सम्बन्धित तमाम कार्मिक संस्कारों पर तो असमप्रजात समाधि की अवस्था में ही विजय पा लेता है । एक बार असमप्रज्ञात समाधि की अवस्था को अपने अभ्यास के द्वारा सिद्ध कर लेने के पश्चात् साधक को कुछ ही जन्म और लेने पड़ते हैं जिनमें वह अपना वचा खुचा हिसाब-किताब भी इस दुनिया में भोग कर चुकता कर जाता है । इन प्रकार वह जन्म मरण के बन्धनों से मुक्त हो जाता है । यानि अब उसको कोई शक्ति बाध्य नहीं कर सकती वह जब चाहता है केवल तब ही इस धरती पर आता है अपनी इच्छा से बल्कि कहना चाहिए अब तो वह आत्मा इन पृथ्वी वासियों पर करुणा करके ही अवतरित होती है । For Private And Personal Use Only

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