Book Title: Yog aur Sadhana
Author(s): Shyamdev Khandelval
Publisher: Bharti Pustak Mandir

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Page 218
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१४ योग और साधना या नहीं। इस शंका को समझने के लिये भी यही अनुभव फिर हमैं रास्ता दिखाता कुण्डलिनि शक्ति इड़ा-पिघला से निकलकर सुषमणा में मुक्त त्रिवेणी के स्थान से मेरूदण्ड के भीतर होकर जब सहस्त्रार तक पहुँचती है तब तक हमारे शरीर में विशेष सन्नाहट जो कि आनन्ददायी भी है होती रहती है लेकिन जैसे ही वह ब्रह्मरन्ध्र के द्वारा बाहर निकलती है । हमारे शरीर की सन्नाहट जो कि प्राणों की ही सन्नाहट थी, वह बन्द हो जाती है तथा हम स्थूल से सूक्ष्म पर आ जाते हैं । जिसके द्वारा पहली बार हमैं पता चलता है कि हमारे में हमारी बुद्धि और कल्पना की शक्ति मन के अतिरिक्त प्राण भी है जो कि इस शरीर में ब्रह्मरन्ध्र = मस्तिष्क में ऊपर हमारे कपाल में एक रन्ध्र या छेद होना हमारे ग्रन्थों में लिखा है जिस रास्ते से हमारा सूक्ष्म शरीर इस स्थूल शरीर से बाहर आता या जाता है । योग में कपाल भेदन क्रिया भी इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिये की जाती है । से आते और जाते हैं उनको इस प्रकार के जानते ही हम उस आशंका के भय से मुक्त हो जाते हैं जिसमें कहा जाता है कि प्राण अलग से कुछ नहीं है, न तो कहीं से कोई आता है और न ही कहीं से कोई जाता है बस मृत और जीवित अवस्था में फर्क यदि कुछ है तो वह केवल इतना है कि इस शरीर के मुख्य अवयवों ने कार्य करना छोड़ दिया है इनका आपस में एक दूसरे से सम्पर्क टूट गया है इसलिए यह शरीर अब क्रियाशील नहीं रह सकता है जबकि प्राणों का अनुभव आते हो हमें इस गलत वक्तव्य की गलती का पता चल जाता है। .. तब वह इसे दूसरी तरह से समझता है, अगर सारे के सारे अवयव ठीक भी हों तब भी बिना प्राणों के चैतन्यता आ ही नहीं सकती और प्राणों के रहते बिलकुल जरा जीर्ण अवस्था में भी अथवा इस प्रकार की अवस्था में भी जिसमें मंडीकल साइन्स वाले यह कह कर आश्चर्य व्यक्त करें कि फलां व्यक्ति अब तक जोवित कैसे है ? उसका सारा शरीर साथ छोड़ गया, हाथ-पांव सुन्न पड़े हैं हृदय भी ठीक से काम नहीं कर रहा, आक्सीजन चल रही है लेकिन आँखें खुली हुयी For Private And Personal Use Only

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