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Achar
कुण्डलिनी जागरण ही समाधि
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रही थी।
कितनी ही बार इस व्यवस्था पर उलट-पलट कर सोचा लेकिन इसका कोई भी उपाय मैं आज तक नहीं सोच सका हूँ, क्योंकि गृहस्थ को छोड़कर साधना करके फल प्राप्त करने वाले इस दुनियाँ में बहुत हैं, उनकी कोई कमी नहीं हैं और यह भी ठीक है साधक को एक ऐसा समय आता है जब उसे इन सांसारिक संबंधों के प्रति विरक्ति उस अथाह आध्यात्मिक खजाने की तुलना में आ जाती है, लेकिन इस संसार को त्याग करना व्यर्थ ही होगा क्योंकि बिना इस संसार का आधार बनाये अन्य सांसारिक मानवों का भला भी नहीं किया जा सकता है और इसी कारण से कालान्तर में भारत बाकी और संसार से पिछड़ गया क्योंकि जो इन शक्तियों की साधना में लग जाता था वह तो समाज छोड़ देता था, समाज के लिए जो कुछ कर सकते थे वे तो उन अनुभवों में खोकर समाज को तिलांजलि देकर चले गये थे और उनके जाने के बाद तो यहाँ बची थी केवल कीचड़ ।
कुछ दिनों बाद मेरे समक्ष कुछ नई बातें घटित हुयीं । इन आठ-दस महीनों के दौरान मैं बड़ी जल्दी-जल्दी बुखार से पीड़ित रहा तथा इन्हीं महीनों में मेरे मिर में तथा दाड़ी के बालों में सफेद बालों की अप्रत्याशित बढ़ोतरी हुई तथा छाती में भी दर्द रहने लगा । जब इन बातों की गहराई में गया तो याद आया, सूक्ष्म के अनुभवों के पश्चात् गरीर के जाम हो जाने के पीछे क्या कारण थे; क्योंकि जब में शरीर में ही नहीं था उस समय यह शरीर मर ही तो गया था उसमें कुछ न कुछ तो कमी अवश्य हो ही जानी थी, इसमें आश्चर्य की भी क्या बात है; कुछ लोगों को यहाँ यह शंका उठ सकती है यदि जब एक बार हृदय की धड़कनें बन्द हो गयीं तब दुबारा से उनको चलाना किस प्रकार से संभव हो सकता
ठीक यही शंका मेरे सामने पिछले दिनों जब मैंने एक योग साधना शिविर का आयोजन किया था उसकी प्रवचन शृंखला के दौरान एक ट्रेनिंग करने वाले डाक्टर ने उठाई थी तब मैंने उससे यही कहा था, कि इतना तो आप भी जानते हैं, कि हृदय की चार धड़कनों में कभी-कभी एक धड़कन गायब हो जाती है जब आदमी अपने हृदय की धड़कनों की लगातार कड़ियों में से एक कड़ी के टूटने के पश्चात् जिन्दा रह सकता है, अपने जीने की ललक के कारण या अपनो
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