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कुण्डलिनी जागरण ही समाधि
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नहीं। इसके साथ ही एक बात और, जिस व्यक्ति ने कुण्डलिनी जागरण करके सुषमणा में प्राणों को प्रवेश कराने के अनुभव स्वयं कर लिये हैं, वही व्यक्ति आगे और कुछ संभावनाओं को घटित करने का अधिकारी रह जाता है क्योंकि इस प्रकार के व्यक्तियों के चित्त तमाम शंकाओं से निर्मल हो जाते हैं और निर्मल चित्त ही तो मुक्ति का अधिकारी होता है तो ध्यान रखना, प्रार्थना का अनुभव ही हमें मुक्ति का मार्ग दिखा सकता है, इस अनुभव के बिना हमें मुक्ति की बात को समझना ही मुश्किल होता है इसलिये ध्यान रखें ओर ध्यान करके ही ध्यान करें।
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