Book Title: Yog aur Sadhana
Author(s): Shyamdev Khandelval
Publisher: Bharti Pustak Mandir

View full book text
Previous | Next

Page 204
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुण्डलिनी जागरण हो समाधि ओमानन्द जी तीर्थ की "पातंजलि योग प्रदीप" के पढ़ने के बाद, मैंने स्वयं ही शुरू कर दिया । श्री शंकराचार्य जी —तुम क्या व्यवसाय करते हो तथा तुम्हारे कितने बच्चे हैं ? मैं- मैं फोटोग्राफी करता हूँ तथा तीन बच्चे भी हैं । श्री शंकराचार्य जी - तुम्हें पता है, तुम कितने कठिन मार्ग पर चल रहे हो ? इसमें मृत्यु का हर समय सामना होता रहता है । अगर किसी दिन कुछ हो गया तो कौन संभालेगा ? इसलिए इसको जानने वाले किसी को गुरू बनाओ नहीं तो समझ लो मुश्किल तुम्हारे सामने ही है । - कहाँ से पैदा करू, गुरू 1 मेरा तो इतना कहना था, उनकी आंखें मेरी आंखों से टकरायीं, कम से कम ७५ वर्ष के वे, रहे होंगे लेकिन कितनी तीक्ष्णता थी उनकी आंखों में, मुझे खूब अच्छी तरह से याद है, अगर मेरे इस उपरोक्त उत्तर में कहीं भी, जरा सी भी कमजोरी होती तो मैं किसी भी हालत में अपलक उनकी नजर का सामना नहीं कर सकता था । कम से कम एक मिनट तक उनसे मेरी आँखें मिलती रहीं, यह एक मिनट कितना लम्बा था और कैसे मैं यह सब झेल गया, परमात्मा ही जानता है । जब इतना समय निकल गया तब बड़े ही सौम्य प्रकृति में आकर उन्होंने फिर से बोलना शुरू किया । श्री शंकराचार्य जी ---कौन से आसन से बैठते हो ? मैं- सिद्धासन से बैठता हूँ । श्री शंकराचार्य जी - इस आसन को छोड़ दो । पद्मासन से बैठा करो सफलता मिलेगी । इतना सुनने के पश्चात मेरा हौसला कुछ बढ़ा और मैंने अभ्य शंका में For Private And Personal Use Only २०१

Loading...

Page Navigation
1 ... 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245