Book Title: Yog aur Sadhana
Author(s): Shyamdev Khandelval
Publisher: Bharti Pustak Mandir

View full book text
Previous | Next

Page 191
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११ योग और साधना निष्ठापूर्वक बहुत ही गहन रुप से उस पर अपना ध्यान जारी रखा अथवा उस पर ध्यान रखते हुए हमें नींद नहीं आयी तो एक समय ऐसा भी आयेगा, जब हमें स्वाँस लेने की आवश्यकता भी नहीं रहेगी और इसकी गति अपने आप रूक जायेगी। इस अवस्था में हमने अपना स्वांस रोका नहीं था बल्कि वह स्वतः ही रुक गया था। प्राणायाम में तो हम स्वास को रोकते हैं जो कि इस साधना का पहला और स्थूल भाग था लेकिन इस दूसरे सूक्ष्म भाग की क्रियाओं में हमें स्वयं को कुछ स्थूल रूप से नहीं करना पड़ता है हमें तो बस पूर्ण रूपेण होश पूर्वक चाक चौबन्द होकर दृष्टा बने रहना पड़ता है । इस क्रिया को क्रियान्वित करने से पहले हमें कुछ बातों को अपनी जानकारी में आवश्यक रूप से ले लेना चाहिये । जो निन्न प्रकार हैं:---- १--ऐसे स्थान पर बै. जहां ध्यान की इस क्रिया में बैठे बैठे आप यदि लुड़क जायें तो-शरीर को कोई चोट न पहुँचे । २+ ऐसे आसन पर बैठे जिस पर आप काफी देर तक स्थिर बैठे रह सकें । जिसको साधना के मध्य में बदलना नहीं पड़े। ३-चूंकि इसमें घन्टों लगते हैं, इसलिये ऐसा समय अपनी साधना का चुनें जिसके बीच आपको आपके व्यापार, नौकरी, गृहस्थी के काम धन्धे अथवा निद्रा से आने वाली झपकियाँ परेशान न करें। ४-स्वच्छ, साफ, हवादार, न गर्म, न ठण्डा, शोर गुल से रहित बन्द स्थान होना चाहिये । ५- केवल ऐसी अगरबत्तियाँ ही लें जिनकी खुशबू आपको पसन्द आती हो । ६-आँखें वन्द रखनी चाहिये। इन बातों के साथ साथ अन्तिम और जो गहरी बात हैं वह भी आप हमेशा ख्याल रख कि इस साधना को करते समय आप अपनी साधना को पूर्णता को आज ही प्राप्त करलेंगे, For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245