________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अध्याय १३
कुण्डलिनी जागरण ही समाधि
कुण्डलिनी शक्ति के जागरण के प्रथम भाग में प्राणायाम की अवस्था में हम अपने शरीर को साधते हैं । शरीर को साधकर ही हम मन को साधने के पात्र होते हैं, जो कि कुण्डलिनी जागरण की साधना का दूसरा भाग है । प्रथम भाग में शरीर को साधकर इड़ा पिघला के द्वारा कुण्डलिनी शक्ति को सभी चक्रों में पहुँचाकर अपने शरीर को हर तरह की परिस्थितियों को सहन करने लायक बनाते हैं। जदं इस अवस्था को नित्य प्रति दिन के अभ्यास के द्वारा अपने सरल अभ्यास में ले आते हैं । तब हम साधना के दूसरे चरण में उतरने लायक हो जाते हैं। दूसरा चरण चूंकि शरीर के स्तर का नहीं बल्कि मन के स्तर का है, इसलिए इतना कठिन भी नहीं है लेकिन उसमें हौंसले को पहले से ज्यादा जरूरत होती है। इसको इस तरह से समझें शरीर को साधकर हम शरीर पर विजय प्राप्त करते हैं मन को साधकर हम मन पर विजय प्राप्त करते हैं। अभी तक साधना के प्रथम चरण में हमने कर्मेन्द्रियों पर विजय पाई हैं जो कि इन्द्रियों का स्थूल स्वरूप है । अब हम मन पर विजय प्राप्त करने के पश्चात अपनी ज्ञानेन्द्रियों पर विजय प्राप्त करेंगे । दसों इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करते ही हम जितेन्द्रिय या इन्द्रियातीत हो जाते हैं।
साधना के दोनों भागों में समान रूप से एक बात ऐसी है, जो कि बहुत ही महत्वपूर्ण है जिसके ठीक हुए बिना न तो हम गहरे प्राणायाम में उतर सकते हैं, जो कि साधना का प्रथम भाग है और न ही साधना के दूसरे भाग में चल सकते हैं जिसका कि वर्णन में आगे करने वाला हूँ। इसलिए दूसरे भाग को आपके समक्ष रखने से पहले इस बात पर भी गौर कर लेना अति आवश्यक है।
For Private And Personal Use Only