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साधन से सिद्धियों की प्राप्ति
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पीछा वे कभी भी नहीं छोड़ने वाले हैं और जितना आप उनसे भागोगे उतना-उतना
और आप उनको अपने पीछे-पीछे पाओगे । लेकिन एक और दूसरी परिस्थिति है। यदि आप हिम्मत से होशपूर्वक गौर से उन कुत्तों की आँखों में आँखें डालकर देखना शुरू कर दें तो वे आँखों के जरिए ही वे आपसे पराजित हो जायेंगे । वे आपके ऊपर भौंकना तो छोड़ ही देंगे साथ ही थोड़ी देर बाद आपके सामने से वे नदारद भी हो जायेंगे । लेकिन ध्यान रखना ! ऐसा तभी होगा जब आप उनसे भागेंगे नहीं बल्कि उनका हिम्मतपूर्वक सामना करेंगे।
.. ठीक एसी ही स्थिति इन एन्द्रिक वासनाओं की है। अगर आप बचकर भागना चाहते हैं तो भागोगे कहाँ ? क्योंकि ये तो हमारे अन्दर हैं जहाँ जहाँ हम जायेंगे वहाँ-वहाँ इनको भी पायेंगे अपने आपके अन्दर । इनसे आप भाग तो नहीं सकते ! अगर मेरे मन को क्रोध की बीमारी है तो जिस समाज में जिस देश में जाऊँगा; क्रोध भी मेरे चित्त के साथ ही जाएगा। यह ऐसा नहीं है कि एक पैर खराब है तो उसे कटवा दिया, पीछा छूटा इस बीमारी से । आप सारा का सारा शरीर भी विच्छेद कर दें तब भी आप अपने मन की बीमारियों तक नहीं पहुँच सकेंगे । ये बीमारियाँ शारीरिक नहीं हैं ये अशरीरी हैं और इनका स्थल है हमारा मन, ध्यान रहे मस्तिष्क नहीं ! क्योंकि मस्तिष्क यन्त्र है शारीरिक । इसलिए इनका उपाय शारीरिक नहीं हो सकता। इनका उपाय भी मानसिक ही होगा । मन के किसी कोने से हो मानसिक यन्त्र खोजना होगा और यह उपाय प्राप्त होता है तपश्चर्या से, प्रार्थना से, होश पूर्वक जागरण से, चिन्तन से मानसिक शक्ति के रूप में । दूसरे शब्दों में प्रार्थना से सिद्धियों की प्राप्ति होती है । सिद्धियाँ क्या हैं ? उनके स्वरूप की वास्तविक परिभाषा या व्याख्या क्या है ? इस बारे में जब हम गौर करते हैं तो हम अपने आपको फिर वहीं खड़ा पाते हैं। जहाँ मन पर विजय प्राप्त करने वाले व्यक्तियों को ही हम सिद्ध मानते हैं ।
संशय सिर्फ इतना है वह किन ऊँचाइयों तक अपनी सामर्थ्य बढ़ा चुका है या वह कितना सामर्थ्यवान है । मन की ऊँचाइयों को छूने में जितना ऊँचा पुरुष उठता जाता है । उसकी पहुँच उतनी गहरी होती चली जाती है । जैसे कोई साधक अपनी उस मानसिक शक्ति को शारीरिक उपयोग में लेता है तो वह अपनी काया को निरोगी रखने में सक्षम हो जाता है, जैसेकि दयानन्दसरस्वती, इसी प्रकार यदि कोई अन्य
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