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योग और साधना
बैठता है । ठीक उसी समय हमारा शरीर अपने केन्द्र से जहाँ सूक्ष्म शरीर अपनी शक्ति के साथ केन्द्रित रहता है स्थूल शरीर से बाहर निकलने की तैयारी करता है और यही तैयारी हमें अजीब सी तीक्ष्णता गुलगुली या सनसनाहट के रूप में महसूस होती है।
आपने स्वयं भी महसूस किया होगा कि जिस समय हम झूले से एकदम नीचे आते हैं तब हमारी गुदा एवं योनि का क्षेत्र अपने आप अन्दर की ओर भिंच जाता है । क्योंकि सूक्ष्म शरीर के साथ-साथ ही हमारी प्राणों की शक्ति इस शरीर के बाहर निकलती है। इसलिए यथार्थ में हमारा शरीर उस सूक्ष्म प्राणवीय शक्ति को शरीर से बाहर जाने से रोकने के लिए ही इस क्रिया को अपने आप सम्पन्न करता है। आध्यात्म में हम इसी प्रक्रिया को मल बन्ध लगाना कहते हैं और जित केन्द्र पर हमारे प्राण असामान्य होते हैं उस शक्ति के केन्द्र को हम ( योनि और गुदा के बीच का क्षेत्र) कुण्डलिनी क्षेत्र कहते हैं। हमारे शरीर में यही है वह कुण्ड जिसमें से हमारे सम्पूर्ण शरीर को जीवनी शक्ति मिलती है उस केन्द्र से जो शक्ति संचालित होती है उस शक्ति को “कुन्डलिनी शक्ति" कहते हैं ।
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