________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
इड़ा पिघला और सुषमणा नाड़ियों का अस्तित्व तथा प्रभाव
१६६
शरजी का यह कहना कि "मुझमें तो वापिस लौटने की भी शक्ति नहीं बची है ।" इस बात को कहना उस समय बड़ा आसान था लेकिन इसके फलितार्थ मैं मृत्यु का आमन्त्रण था जो कि हमें रात्रि में ठन्ड की वजह से निश्चित रूप से मिलती ।
उनके इस प्रकार के कथन के पश्चात मैंने इतना ही कहा कि "अभी हम थके हुये हैं, अधेि घण्टे तक विश्राम लेने के पश्चात ही हम ठीक से विचार कर सकेंगे, क्योंकि अभी हमारे फैसले इस थकान से प्रभावित होंगे ।" आधे घण्टे बाद में हमने अपने आपको बिल्कुल संयत पाया। तब मैंने अपने शब्दों को थोड़ा सा वजन देकर उनके सामने रखा, "मैं भरतपुर से और आप डीग से, यहाँ इस धार्मिक यात्रा पर आये हैं। गंगोत्री पहुँचने से पहले तक हम सभी इस रास्ते के दुर्गम पहाड़ी सड़क मार्ग पर कार से चलते हुये-कहते रहे थे कि अगर जीवित वापिस लौटे तो अपने-अपने संसार में जाकर मिल लेंगे । इस बात में अब भी कोई खास परिवर्तन नहीं आया है। अगर कुछ थोड़ा बहुत परिवर्तन इसमें आया भी है तो वह केवल इतना ही कि पहले जहाँ हमारा संसार भरतपुर और डीग मैं था अब वही संसार गंगोत्री के उस पर्यटक विश्राम गृह में है । जहाँ हमारे सांसारिक सम्बन्धी माता-पिता, बीवी-बच्चे मौजूद हैं । अब तो हमें इस तथ्य पर गौर करना है। यदि हम जीवित गौमुख से वापिस लौटे तो अपने-अपने संसार में आकर मिल लेंगे, नहीं तो गंगा की गोद में समा जायेंगे । एक बात तो यह है और दूसरी है इसके विपरीत कि अभी भी समय है वापिस लौट चलें लेकिन, इतना ध्यान रखना यदि गौमुख जाने की हिम्मत हम आज नहीं कर सके तो फिर इस जिन्दगी में तो इस यात्रा की सोचना भी नहीं क्योंकि जो स्थिति हम यहाँ देख रहे हैं, हमारे शेष जीवन मैं यहाँ सुगम रास्ता बन जावें, यह संभव ही नहीं है । सन्नाटा खिच गया थोड़ी देर के लिए हम दोनों के बीच कुछ समयोपरान्त पराशर जी उठे शायद निशाना ठीक जगह पर लगा था, बोले- "जो होगा सो देखा जायेगा।" मैं स्वयं तो इसके लिए तैयार ही था हम दोनों फिर से यात्रा पर आगे बढ़ चले थे। अब ऐसा लग रहा था कि पहला वाला श्यामदेव शायद वहीं रह गया है । अब तो को ई और ही यात्रा कर रहा है । खैर जो भी हों जैसे-तैसे हम आगे बढ़े जा रहे थे, एक दम शान्त, तभी हमें बारह वर्ष का एक लड़का मिला जो अपनी पीठ पर आलू का थैला लादे-लादे पीछे से चला आ रहा था। भले ही वह बच्चा ही था लेकिन बड़ा सुख मिला उसे देखकर कि कोई संगी साथी तो मिला-इस अनजान
For Private And Personal Use Only