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योग और साधना
हमारा मस्तिष्क उस नशे के प्रभाव में रहता है, चाहे थोड़ा या ज्यादा । इसलिये ध्यान रखना कि प्राणायाम करने से पहले आपका मस्तिष्क बिल्कुल शान्त, निविघ्न और तनाव मुक्त होना चाहिये, ऐसा क्यों होना चाहिए ? इसको समझने के लिए हमें प्राणायाम की क्रिया और उसके होने वाले परिणामों को समझना होगा।
__"प्राणायाम'. शब्द के अर्थ हैं "प्राणों का आयाम"। इस क्रिया के द्वारा हम इस स्थूल शरीर के उन आयामों को खोलते हैं जो अभी तक हमारी जानकारी में या हमारे मस्तिष्क को मालूम नहीं थे और वास्तव में प्राणायाम के द्वारा ऐसा सम्भव होता भी है।
प्राणायाम को अपनाने के लिए हमें प्राणों का आधार जो हमारा स्वांस है उसके द्वारा ही हम प्राणायाम की गहराई में उतरते हैं । इस स्वांस के द्वारा ही हम अपने प्राणों को अपने शरीर मैं मन वांछित केन्द्र पर केन्द्रित करने को बाध्य करते हैं। ऊपरी तरह से देखने में यह बात कितनी बचकानी लगती है। लेकिन ऐसा सम्भव होता है, जब हम गहरे प्राणायाम करने का अभ्यास सीख जाते हैं । इसकी इतनी सारी प्रक्रियाएँ आपको पुस्तकों में अलग-अलग तरीके से मिल जावेंगी। लेकिन उन सबका एक ही उद्देश्य है कि आप कितनी देर तक बिना स्वाँस लिए रह सकते हैं तथा छोड़ने के पश्चात या स्वांस लेने के पश्चात् आपको घबराहट या मनोबल किस स्तर का होता है। जब तक लगातार इसी तरह कठिनतम प्रक्रिया को अपनाते हुये सामान्य अवस्था में अपने मस्तिष्क को नहीं रख पाते तब तक आप इसके द्वारा वांछित फल प्राप्त नहीं कर सकते ।
वांछित फल क्या है ? तथा उनको प्राप्त करने का उद्देश्य क्या है ? इसको समझे बगैर आप वहाँ तक पहुँचेंगे ही कैसे और क्यों पहुँचेंगे । अगर हम एक परिभाषा के रूप में प्राणायाम का उद्देश्य जाने तो, वह यह कि हम अपने मस्तिष्क के 'निष्क्रिय पड़े कोषों को सक्रिय करने के लिए प्राणायाम करते हैं ।
लेकिन किस प्रकार तथा किस अवस्था में उनको हम सक्रिय कर लेते हैं । इस बात को ही हमें यहाँ समझना है । मस्तिष्क के कोषों पर से हड़ा पिघला के द्वारा हमारी प्राणों की शक्ति को अपनी चरम अवस्था में से गजारना ही प्राणा.
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