________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जीव की संरचना
से प्रभावित होकर सूक्ष्म शरीर का रूप धारण करके उस प्रथम कोष में बने निर्वात में उतर जाता है जो शक और डिम्ब के द्वारा बनाया हुआ है। सूक्ष्म शरीर के इसमें उतरते ही इस कोष का अस्तित्व स्वतन्त्र हो जाता है। जिसके कारण एक से दो और दो से असंख्य कोषों की रचना वहाँ होती है। और नौ मास तक गर्भ के अन्दर इन कोषों की संख्या बढ़ते-बढ़ते जब इस अवस्था तक आ जाती है कि वह नवनिर्मित स्थूल देह बिना किसी आवरण के इस पृथ्वी पर रह सके तब वह गर्भ से बाहर आ जाती है ।
यहाँ यह भी बताना जरूरी है कि कुछ ग्रन्थों में "आत्मा" को गर्भ में सातवें महीने में उतरना बताया जाता है । जबकि सात महिने तक तो उसमें उसके शरीर के तमाम अवयव तैयार हो जाते हैं । जिनके कारण वह हिलनेडुलने लगता है क्योंकि यदि उसमें अब तक जीवन नहीं होता तो वह कब का सड़ गल कर माँ को भी परेशानी में डाल चुका होता, और हम देखते भी हैं कि जैसे ही यदि किसी माँ के पेट में बच्चा यदि किसी कारण से छटे महीने या पाँचवे महीने में ही मर जाता है तो तुरन्त सफाई करानी पड़ती है नहीं तो माँ के शरीर में उसका जहर घुल जाने की सम्भावना बन जाती है । एक बात और ...""कुछ विद्वान यह भी कहते हैं कि प्राण और जीव अलग-अलग हैं। इसलिए शुरू के शुक्र और डिम्ब के मिलने के समय प्राण तो आ जाते हैं। लेकिन जीव आत्मा सांतवे महीने में ही आती है और तब से ही वह दुख सुख अनुभव करने लगती है। मेरा यहाँ कुछ भिन्न मत है। यह ठीक है कि जीव और प्राण अलग-अलग हैं और ऐसा मैंने भी लिखा भी है लेकिन जिस तरह प्राणों के इस शरीर से बाहर निकलने के साथ आत्मा भी निकल जाती है, ठीक इसी प्रकार जब प्राण इस शरीर में पाँचवे आकाश तत्व के रूप में प्रवेश करते हैं; ठोक तभी उन प्राणों के ऊपर सवार होकर आत्मा भी इस देह के उस सूक्ष्मतम स्वरूप गर्भ में प्रवेश कर जाती है।
कई लोग कहते हैं कि बच्चा माँ के गर्भ में एक विजातीय शरीर के रूप में पनपता है जैसे कि हमारे शरीर में कभी-कभी मस्सा इतना बड़ा हो जाता है जो काफी बड़ा होकर लटकता रहता है । ठीक इसी प्रकार बच्चा बड़ता रहता है उसका पोषण शरीर के मस्से की तरह माँ के शरीर से होता रहता है और सात महीने पश्चात उसमें प्राण आ जाते हैं तब वह स्वतन्त्र हो जाता है। उसके पश्चात
For Private And Personal Use Only