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अध्याय ११
इडा पिंघला और सुषमणा नाड़ियों का अस्तित्व
तथा प्रभाव
मंडीकल साइंस जानता है कि दो अलग-अलग रंग की नाड़ियों का जाल हमारे सम्पूर्ण शरीर के जर्रे-जरे में फैला हुआ है, जिसको कि हम "नर्वस सिस्टम" (नाड़ी तन्त्र) के नाम से जानते हैं। इन दोनों नाडियों का प्रारम्भ मेरुदण्ड के अंतिम और निचले सिरे पर से दायीं तथा बायीं दिशा में जाकर होता है । इन्हीं दोनों नाडियों को हम इड़ा और पिंघला नाड़ियों के नाम से जानते हैं। ठीक उसी स्थान से एक और नाड़ी जिसे हम सुषमणा के नाम से जानते हैं वह मेरुदण्ड (रीढ़ की हड्डी) के अन्दर से होती हुई हमारी गर्दन और हमारे मस्तिष्क के पिछले भाग से होती हुई मस्तिष्क में जाकर विलीन हो जाती है ।
इतनी बात की पुष्टि तो हमारे शरीर विज्ञानी भी करते हैं। महषियों ने इस बारे में इससे और अधिक ज्यादा खोज की है, वह यह कि जिस प्रकार से ये तीनों नाड़ियाँ रीढ़ की हड्डी के बिलकुल अंतिम हिस्से से शुरू होती है । (उस स्थान को हमारी आध्यात्मिक भाषा में मुक्त त्रिवेणी कहा जाता है) उसी प्रकार ये तीनों नाड़ियाँ हमारी दोनों आँखों की भवों के मध्य में माथे के अन्दर फिर दुबारा आकर मिलती हैं (इस स्थान को युक्त त्रिवेणी कहा जाता है) इड़ा तथा पिघला नाड़ी तो अपने चलने की विपरीत दिशा दायें तथा बायें से आकर मिलती है और सुषमणा हमारी गर्दन के पिछले सिरे से मस्तिष्क के ऊपरी खोल के ऊपर से आकर फिर इन दोनों भवों के स्थान पर आकर उतरती हैं मस्तिष्क के ऊपर से गुजरते हए नाड़ी का कहीं कोई प्रत्यक्ष में पता नहीं चलता है क्योंकि वह यहाँ इस प्रदेश में आकर इस कदर इतने सूक्ष्म जरों में या सूक्ष्म तंतुओं में विभाजित हो जाती है जिसकी वजह से इसका दिखाई देना आज तक कठिन ही रहा है लेकिन न दिखाई देते हुये भी उसका प्रभाव
कि वहाँ अनुभव में आता रहता है इसलिये उसके अनुपस्थित रहने का कोई प्रश्न ही नहीं है।
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