________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१३६
योग और साधना
वह उन आधारों की पकड़ में नहीं आ सकता है। जबकि वह हमारी मानसिक अनुभव को पकड़ में आ जाता है। उसको अपने अनुभव में लाने के लिये तथा उसका पता चलाने के लिये भी हमें बड़ी विचित्र स्थिति में से होकर गुजरना होता है।
जैसे इसे ऐसे समझें, हमें अपनी आँख का पता तब चलता है जब हमारी आँख में कोई बाधा पैदा हो जाती है अन्यथा सारे दिन इन आँखों से देखने या कार्य लेने के पश्चात् भी हमें हमारी आँखों के होने का आभास हमें नहीं होता । इसी प्रकार शरीर के प्रत्येक अंगों के बारे में जानने के लिये इसी सिद्धांत को ठीक से समझें । हमें हमारे शरीर का पता तब ही चलता है जब वह रुग्ण हो जाता है जब उसको कोई रोग या बाधा आ घेरती है, हम दिन भर में एक बार भी शरीर के बारे में बात-चीत नहीं करते । यदि आप किसी बीमार व्यक्ति से मिलने जायें तो जब तक आप उसके पास रहेंगे । वह अपने शरीर से सम्बन्धित बातचीत ही करता रहेगा । कभी कहेगा, पड़े-पड़े कमर दर्द कर रही है, कभी कहेगा सर फटा जा रहा है। ऐसे क्यों कहता है वह ? वह इसलिए कहता है कि उसका शरीर सामान्य नहीं है और जो चीज सामान्य नहीं होती हमारे शरीर में यह सबसे प्रथम हमारे अनुभव की दृष्टि में आ जाती है। ठीक इसी सिद्धांत के अनुसार यदि इस उर्जा के स्रोत या केन्द्र पर दृष्टिपात करना है तो अपने अनुभव में लाकर किसी न किसी प्रकार से हमें केन्द्र पर बाधा उपस्थित करके वहाँ उस केन्द्र की स्थिति को असामान्य करना ही होगा, और जैसे ही उस केन्द्र को हम असामान्य अवस्था में ले आयेंगे तो निश्चय ही हमें उसको जानकारी हमें अपने अनुभव में हो ही जावेगी। इसमें कोई शंका या संशय को गुजाइश किसी भी स्थिति में नहीं है।
अब चूकि वह शरीर के किसी भी अंग विशेष का मामला नहीं है। वह तो हमारी जीवनी शक्ति का मामला है। इसलिए हमें अपने जीवन पर ही खतरा मोल लेकर अनुभव करना होगा। तभी हम उस केन्द्र को जान सकेंगे। आध्यात्म में इसी सैद्धान्तिक प्रक्रिया को योग साधना के द्वारा अपनाकर हम उस शक्ति के हेन्द्र को जान लेते हैं।
आप कभी न कभी नुमायश में इंजन से या आदमियों द्वारा चलाये जाने
For Private And Personal Use Only