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कुण्डलिनी का स्थान ।
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तैयार हो जाएगा । इसलिए मेरी प्रार्थना आपसे यह है कि आध्यात्म में आगे के अध्यायों को समझने के लिये आप किसी भी पद्धति से अप्रभावित रहें इससे मेरा तात्पर्य यह है कि आप किसी भी पूर्वाग्रह से ग्रसित न रहें।
हमारे शरीर विज्ञानी कहते हैं कि हमारे शरीर में जो ताकत पैदा होती है वह हमारे शरीर के कोषों में पैदा होती है । यानि कि हमारे शरीर के हाड़ मांस का प्रत्येक कोष अपने आप में एक इकाई है या एक बिजलीघर है । हमारा शरीर इन कोषों की वजह से ही जीवित दिखाई पड़ता है और इन्हीं की शक्ति के द्वारा ही हमारे शरीर के अंग प्रत्यंग क्रियाशील रहकर इस संसार का अनन्य कार्य करते हैं । इसके विपरीत आध्यात्म में हमारे शरीर में जीवित रूप में दिखाई देती ऊर्जा का एक स्रोत होता है । इसी ऊर्जा के स्रोत से सम्पूर्ण शरीर को अथवा सम्पूर्ण कोषों को ताकत पहुँचती है । अगर हम इन मैडीकल साइंस वालों की बात मान भी लें तो भी बात पूरी नहीं हो जाती क्योंकि हमारे मन में एक शंका पैदा होती है । जिसका जवाब मैडीकल साइंस बालों के पास नहीं है। जैसे वे कहते कि प्रत्येक कोष अपन आप में एक पावर इकाई है । यानि कि वह अपनी शक्ति आप पैदा करता है स्वतन्त्र रूप से । स्वतन्त्र अस्तित्व में इसका मतलब है यदि उसे अपने शरीर के बाहर 'निकाल दें तो उसे जीवित रहना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं होता । फिर क्या हम यह माने कि वह अपने आप में "पावर हाउस" नहीं है । हमारे शरीर में असंख्य कोष मृत अवस्था में भी रहते हैं । लेकिन हम मर नहीं जाते । जबकि हमारे शरीर के बिना एक भी कोष जिन्दा नहीं रह सकता।
सीधी-सी सरल बुद्धि भी इस बात को समझ कर यह निष्कर्ष निकाल लेंगी कि कहीं न कहीं से किसी न किसी प्रकार इन छोटे-छोटे कोषों को जीवित रहने के लिये शक्ति हमारे शरीर से ही मिलती है। अब जब हम यह मान लेते हैं कि हमारे शरीर में से ही इनको ताकत मिलती है । तब हमारे सामने एक तथ्य उभरकर आता हैं कि हमारे शरीर के किसी न किसी कोने में कहीं न कहीं ऐसा केन्द्र होना चाहिये जहाँ से प्रत्येक कोष को ताकत मिलती है लेकिन यह शरीर तो सारा का सारा कोषों से ही तो मिलकर बना है। ऐसी कोई जगह खाली ही नहीं जिसमें कोई कोष नहीं हो । मैडिकल-साइस को तो मिली नहीं है । और मिल भी नहीं सकती है। क्योंकि जिन आधारों को आधार बनाकर उस केन्द्र को वे ढ़ते हैं
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